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ClinicsBy NS Desk | NirogStreet News | Posted on : 31-Dec-2018
प्रधानमंत्री मोदी का आयुर्वेद का पैगाम, वर्ष 2018 का लेखा-जोखा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आयुर्वेद और योग के न केवल प्रबल पैरोकार हैं बल्कि अपने जीवन में इसका उपयोग भी करते हैं. आयुर्वेद और योग में इसी दिलचस्पी की वजह से उन्होंने आते ही आयुष मंत्रालय का गठन किया और आयुर्वेद व योग के प्रचार-प्रसार में कोई कोर-कसर नहीं. इस संबंध में उन्होंने कई अवसरों पर आयुर्वेद से संबंधित वक्तव्य दिए. पूरे वर्ष आयुर्वेद पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो कहा, उसे एकसूत्र में पिरोकर हम नीचे प्रस्तुत कर रहे हैं ताकि पूरे साल का एक लेखा-जोखा मोटे तौर पर समझा जा सके.
वर्ष 2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आयुर्वेद पर दिए गए भाषणों का सार :
1 - आयुर्वेद से विश्व में स्वास्थ्य क्रांति : भारत के नेतृत्व में जिस तरह से दुनिया में सूचना प्रौद्योगिकी क्रांति आयी है उसी तरह अब आयुर्वेद की अगुवाई में विश्व में स्वास्थ्य क्रांति भी आएगी.
2 - हर जिले में आयुर्वेद अस्पताल : आयुर्वेद के विस्तार के लिए यह जरूरी है कि हर जिले में आयुर्वेद वाला अस्पताल हो. आयुष मंत्रालय इस दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है और केवल तीन सालों में 65 से ज्यादा आयुष अस्पताल बन हो चुके हैं.
3 - वेलनेस का माहौल बने : अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान (aiia) के मौके पर उन्होंने आयुर्वेद चिकित्सकों को संबोधित करते हुए कहा - "मेरी आप सबको शुभकामनाएं हैं कि वेलनेस का ऐसा माहौल बने कि आपको यहां तक आने की नौबत ना आए। आज इस इंस्टीट्यूट से आयुर्वेद को नई ऊर्जा मिल रही है. यह संस्थान रिसर्च और हेल्थ प्रैक्टिस का केंद्र बनेगा."
4 - आयुर्वेद में भरोसा : आयुर्वेद का विजय पताका पूरे विश्व में फहराए इसके लिए जरुरी है, आयुर्वेद से पढ़े - लिखे लोगों का आयुर्वेद के प्रति समर्पण. आज जो आयुर्वेद पढ़कर निकलते हैं क्या सच में 100 प्रतिशत लोग इसमें आस्था रखते हैं. कई बार ऐसा होता है कि मरीज जब जल्द ठीक होने पर जोर देते हैं, तब क्या आयुर्वेद के कुछ चिकित्सक उन्हें एलोपैथी की दवा दे देते हैं. आयुर्वेद की स्वीकार्यता की पहली शर्त यह है कि आयुर्वेद पढ़ने वालों की इस पद्धति में शत प्रतिशत आस्था हो, भरोसा हो.
5 - आयुर्वेद के लोग एलोपैथ इलाज करायेंगे तो कैसे चलेगा : एक कहानी है कि एक बार किसी ने नौकर से पूछा मालिक कहां गए तो उसने कहा वो तो आगे वाले रेस्टोरेंट में खाने गए हैं. मुझे बताएं कि उसके रेस्टोरेंट में कौन खाने आएगा. यही हाल आयुर्वेद का है. जब डॉक्टर्स ही अपने इलाज के लिए एलोपैथिक डॉक्टर से सामने लाइन में खड़े रहेंगे तो कौन उनसे इलाज कराएगा."
6 - आयुर्वेद को दायरा बढ़ाने की जरुरत : आयुर्वेद को अपना दायरा बढ़ाने की जरुरत है. हमें उन क्षेत्रों के बारे में भी सोचना होगा जहां आयुर्वेद अधिक प्रभावी भूमिका निभा सकता है. इसमें खेल एक प्रमुख क्षेत्र है, जहां बड़े बड़े खिलाड़ी अपने लिये फिजियोथेरापिस्ट रखते हैं और कई बार उन दवाओं के कारण परेशान भी होते हैं. आयुर्वेदथेरापी खेल के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. सेना के जवानों के स्वास्थ्य और मानसिक एकाग्रता एवं तनावमुक्त बनाने के क्षेत्र में भी आयुर्वेद की अहम भूमिका हो सकती है.
7 - पूरे विश्व का झुकाव जब प्राकृतिक चिकित्सा की तरफ हो रहा है तो ऐसे में आयुर्वेद के लिए अनुकूल माहौल बनाना जरा भी मुश्किल काम नहीं. बस आज की आवश्यकता में आयुर्वेद की उपयोगिता को ज्यादा से ज्यादा बढ़ाना होगा.
8 - आयुर्वेद दवाओं की पैकेजिंग : आयुर्वेद में डाटा और रिसर्च मैनेजमेंट बहुत जरूरी है. एक कमीशन की रिपोर्ट के मुताबिक, हमारे घरों से आयुर्वेद दूर है, क्योंकि इसकी पद्धति आज के जमाने के हिसाब से नहीं है. लोग इसी से परेशान हो जाते हैं कि पहले दवाई को उबालो, फिर छानो, सुखाओ. आज इन दवाओं की पैकेजिंग की जरूरत है, ताकि एलोपैथिक की तरह ही उन्हें दवाएं तैयार मिल सकें.
9 - बाज़ार : दुनिया में हर्बल दवाओं का ग्लोबल मार्केट तैयार हो रहा है. भारत को भी इसमें भागीदार होना है. औषधीय खेती के लिए काम करना होगा. सरकार ने स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को स्वीकृति दी है. स्वास्थ्य सेवा में एफडीआई का फायदा आयुर्वेद और योग को कैसे मिले, इस बारे में भी प्रयास किए जाने चाहिए
10 - आयुर्वेद से आशाएं : दुनिया बड़ी आशा भरी नजरों से भारत के आयुर्वेद और योग की ओर देख रही है. आयुर्वेद को उनकी आशाओं पर खरा उतरना होगा. गरीब लोगों तक भी आयुर्वेद को पहुँचाना होगा.
11 - आयुर्वेद विशेषज्ञों को ऐसी दवाएं खोजने की जरूरत है जो मरीजों को तत्काल राहत प्रदान करने के साथ उन्हें दवाओं के दुष्प्रभावों को दूर रखें.
12 - निजी क्षेत्र कारपोरेट सामाजिक दायित्व (सीएसआर) के तहत कोष के एक हिस्से का इस्तेमाल आयुर्वेद को मजबूत बनाने और आयुर्वेद से संबंधित संस्थाएं खोलने में करें.
13 - आयुर्वेद , हमारी पहचान : कोई भी देश विकास की कितनी ही चेष्टा करे, कितना ही प्रयत्न करे, लेकिन वो तब तक आगे नहीं बढ़ सकता, जब तक वो अपने इतिहास, अपनी विरासत पर गर्व करना नहीं जानता. अपनी विरासत को छोड़कर आगे बढ़ने वाले देशों की पहचान खत्म होनी तय होती है. उन्होंने कहा कि गुलामी के दौर में हमारी ऋषि परंपरा, हमारे आचार्य, किसान, हमारे वैज्ञानिक ज्ञान, हमारे योग, हमारे आयुर्वेद, इन सभी की शक्ति का उपहास उड़ाया गया, उसे कमजोर करने की कोशिश हुई और यहां तक की उन शक्तियों पर हमारे ही लोगों के बीच आस्था कम करने का प्रयास भी हुआ. आजादी के बाद उम्मीद थी कि जो बची है, उसे संरक्षित किया जायेगा, आगे बढ़ाया जायेगा, लेकिन जो बचा था, उसे उसके हाल पर छोड़ दिया गया. इसके कारण हमारी दादी मां के नुस्खों को दूसरे देशों ने पेंटेट करा लिया.
14 - आयुर्वेद शिक्षा : हमें आयुर्वेद शिक्षा की गुणवत्ता पर ध्यान देने की जरूरत है. आयुर्वेद के कोर्स पर फिर से ध्यान देने की जरूरत है. हम इस बात पर भी विचार करें कि बीएएमएस के पांच साल के कोर्स में ही वर्ष क्या हम छात्रों को कोई डिग्री प्रदान कर सकते हैं? सरकार स्वास्थ्य सेवाओं में आयुर्वेद, योग और अन्य पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों को एकीकृत करने का प्रयास कर रही है.
15 - आयुर्वेद सिर्फ एक चिकित्सा पद्धति नहीं है. इसके दायरे में सामाजिक स्वास्थ्य, सार्वजनिक स्वास्थ्य, पर्यावरण स्वास्थ्य जैसे अनेक विषय भी आते हैं. इसी आवश्यकता को समझते हुए ये सरकार आयुर्वेद, योग और अन्य आयुष पद्धतियों के सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा प्रणाली के साथ समन्वय पर जोर दे रही है.
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