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ClinicsBy NS Desk | NirogStreet News | Posted on : 09-Jan-2019
-लोकेन्द्र सिंह
भारत नये सिरे से अपनी ‘डेस्टिनी’ (नियति) लिख रहा है। यह बात ब्रिटेन के ही सबसे प्रभावशाली समाचार पत्र ‘द गार्जियन’ ने 18 मई, 2014 को अपनी संपादकीय में तब लिखा था, जब नरेंद्र मोदी की सरकार प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आयी थी। गार्जियन ने लिखा था कि भारत अब भारतीय विचार से शासित होगा। गार्जियन का यह आकलन शायद सच साबित हो रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल में हम देखते हैं कि भारतीय ज्ञान परंपरा को स्थापित किया जा रहा है। जिस ज्ञान के बल पर कभी भारत का डंका दुनिया में बजता था, उस ज्ञान को फिर से दुनिया के समक्ष प्रस्तुत करने की तैयारी हो रही है। केन्द्र सरकार ने सबसे पहले अंतरराष्ट्रीय स्तर पर योग की उपयोगिता को स्थापित किया। यह सिद्ध किया कि योग दुनिया के लिए भारत का उपहार है। इसी क्रम में केन्द्र सरकार भारत की चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद को स्थापित करने का प्रयास कर रही है। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के बाद मोदी सरकार ने राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस मनाने का निर्णय लिया जो स्वाग्ययोग्य कदम है।
देश में पहली बार धनतेरस के दिन वास्तविक धन (भारत की समृद्ध ज्ञान परंपरा) की स्तुति की गयी। भगवान धन्वन्तरि चिकित्सा विज्ञान के अधिष्ठा हैं। इसलिए सरकार ने भगवान धन्वन्तरि के जयंती प्रसंग पर राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस मनाने की घोषणा की। चिकित्सा क्षेत्र खासकर आयुर्वेद से जुड़े विद्वानों ने सरकार के इस निर्णय को आयुर्वेद विज्ञान के हित में माना है।
दरअसल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आयुर्वेद विज्ञान के महत्त्व को समझते हैं। वर्ष 2016 फरवरी मंग केरल के कोझिकोड में आयोजित वैश्विक आयुर्वेद सम्मेलन में उन्होंने कहा था कि आयुर्वेद की संभावनाओं का पूरा उपयोग अब तक नहीं हो सका है। जबकि इस भारतीय चिकित्सा पद्धति में अनेक स्वास्थ्य समस्याओं के समाधान की क्षमता है। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार आयुर्वेद जैसी पारंपरिक चिकित्सा पद्धति को प्रोत्साहित करने के लिए प्रतिबद्ध है। राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस मनाने की घोषणा करके आयुर्वेद के प्रति अपनी उसी प्रतिबद्धता को प्र.मोदी ने निभाया भी। निश्चित ही केंद्र सरकार का ये प्रयास आयुर्वेद को विश्व में भारतीय चिकित्सा पद्धति के रूप में स्थापित करने में मील का पत्थर साबित होगी। आयुर्वेद के विकास और विस्तार के लिए केंद्र सरकार ने न केवल आयुष मंत्रालय को बनाया बल्कि स्वास्थ्य मंत्रालय से उसे स्वतंत्र भी कर दिया, ताकि आयुर्वेद सहित भारतीय चिकित्सा पद्धतियों को पाश्चात्य चिकित्सा पद्धतियों के मुकाबले दमदारी से खड़ा किया जा सके। उम्मीद करते हैं कि सरकार का यह प्रयास रंग लाएगा और आयुर्वेद नयी ऊँचाइयों को छूएगा.
(लेखक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं. उनका यह लेख मीडिया खबर डॉट कॉम से लिया गया है और कुछ संशोधनों के साथ प्रकाशित किया गया है)
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