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ClinicsBy NS Desk | NirogStreet News | Posted on : 22-Jul-2020
Image Courtesy - Google News
कोरोना महामारी की वजह से सभी स्कूलों में ऑनलाइन कक्षाओं का संचालन शुरू हो गया है, जिससे बच्चे अब इलेट्रॉनिक गैजेट जैसे कि मोबाइल और लैपटॉप पर अपना समय ज्यादा बिता रहे हैं। इसका असर उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा है। इस बढ़ती समस्या को लेकर माता-पिता भी परेशान हैं। स्मार्टफोन और लैपटॉप पर लगातार काम करते रहने से बच्चों के कंधों, पीठ और आंखों में दर्द होने लगा है। बच्चों के रूटीन में भी काफी बदलाव हुआ है। इस वजह से बच्चे अब माता-पिता के साथ अपना समय नहीं बिता रहे हैं। माता-पिता के रोकने पर बच्चों में चिड़चिड़ापन देखने को मिल रहा है। इस समस्या को लेकर स्कूल प्रशासन भी माता-पिता से सुझाव ले रहे हैं।
दिल्ली के शालीमार बाग स्थित मॉडर्न पब्लिक स्कूल की प्रिंसिपल अलका कपूर ने आईएएनएस को बताया, "कोविड 19 की वजह से बच्चों का स्क्रीन टाइम बढ़ गया है। बच्चों की एक्टीविटी और पढ़ाई भी अब ऑनलाइन हो रही है। इसको लेकर हमने बच्चों को गुड स्क्रीन टाइम ओर बैड स्क्रीन टाइम के सेशन दिए कि किस तरह से पढ़ाई करनी है। हमने इस बात पर भी जोर दिया कि एक क्लास के बाद यानी हर 20 मिनट के बाद आंखों की एसक्ससाइस कराएं, ताकि उनकी आंखें स्वस्थ रहें।"
उन्होंने कहा, "हमने बच्चों को ब्लू स्क्रीन का मतलब भी समझाया, और ये भी बताया कि आपको रोशनी में पढ़ना है, ताकि आंखों पर असर न पड़े। पढ़ते वक्त बच्चों के बैठने का पोजिशन भी ठीक होना चाहिए। ये सभी मुख्य बातें हमने समझाई।"
अलका कपूर ने कहा, "हमने एक सर्वे भी कराया माता-पिता के साथ, जिसमें हमने जानने कोशिश की कि स्क्रीन टाइम जो हम स्कूल में दे रहे हैं, क्या उससे माता-पिता संतुष्ट हैं? तो लभगभ सभी ने जो हमें सुझाव दिए, हमने उसके अनुसार टाइम टेबल में भी बदलाव किया।"
हालांकि बच्चों का स्क्रीन टाइम बढ़ने को लेकर पहले भी चिंता जाहिर की गई है। बच्चा 24 घंटों में अपना कितना वक्त फोन और लैपटॉप पर बिता रहा है, इसको हम स्क्रीन टाइम कहते हैं।
दिल्ली निवासी चारु आनंद के दो बच्चे हैं। उन्होंने आईएएनएस से कहा, "मेरा एक बेटा सातवीं का छात्र और बिटिया 10वीं की छात्रा है। कोरोना के दौरान क्लासेस ऑनलाइन लग रही हैं। लेकिन हमें बच्चों को ये बताना होगा कि इस दौरान परिवार के साथ रिश्तों को मजबूत करें, अच्छी चीजों में अपना समय व्यतीत करें। ग्रैंड पेरेंट्स के साथ ज्यादा वक्त बिताएं। वे अपने पुराने किस्से साझा करेंगे और कहानियां सुनाएंगे तो बच्चों को काफी कुछ सीखने को मिलेगा।"
वहीं, आंखों की डॉक्टर श्रुति महाजन ने आईएनएस को बताया, "ज्यादा मोबाइल और लैपटॉप इस्तेमाल करने से बच्चों के सर में दर्द, आंखों में जलन, आंखों में भारीपन और आंखें लाल होना शुरू हो जाती हैं। बच्चों के आंखों से पानी बहना शुरू हो जाता है।"
उन्होंने कहा कि बच्चों को एक घंटे मोबाइल और लैपटॉप इस्तेमाल करने के बाद ब्रेक लेना चाहिए। अंधेरे में बच्चों को फोन नहीं चलाना चाहिए, इससे उनकी आंखों पर सीधा असर पड़ता है। खास तौर पर बच्चे लेटकर फोन का इस्तेमाल करते हैं। ऐसा बिल्कुल नहीं करना चाहिए।
डॉ.श्रुति ने कहा, "बच्चों को अपने बैठने के तरीके में बदलाव करना होगा, लैपटॉप या फोन लेटकर ना देखें, कुर्सी और टेबल का इस्तेमाल करें, लैपटॉप चलाते वक्त आपकी आंखें एक उचित दूरी पर होनी चाहिए।"
डॉ. नीलम मिश्रा मनोचिकित्सक हैं। उन्होंने आईएएनएस को बताया, "इस वक्त बहुत सारे माता-पिता की शिकायत है कि उनके बच्चे बहुत ज्यादा फोन का इस्तेमाल कर रहे हैं। इस बात से मां-बाप बहुत ज्यादा परेशान हैं।"
उन्होंने कहा, "हम ऑनलाइन क्लासेस को नहीं रोक सकते। मगर माता-पिता को बच्चों के प्रति व्यवहार में बदलाव करना होगा। हमें बच्चों को किसी और एक्टिविटी में भी लगाना होगा। हफ्ते में 5 दिन क्लास के बाद शनिवार और रविवार को बच्चों को आर्ट्स एंड क्राफ्ट में इन्वॉल्व कर सकते हैं। बच्चों को अन्य खेलों के प्रति प्रेरित कर सकते हैं, जैसे साइकिल चलाना, कैरम बोर्ड खेलना, चेस खेलना आदि।"
डॉ. नीलम ने कहा कि माता-पिता को यह भी सोचना होगा कि बच्चों के पीछे ज्यादा न पड़ें, वरना बच्चे फिर चिढ़ने लगेंगे। बच्चों के मन में निगेटिविटी आनी शुरू हो जाएगी। इसलिए माता-पिता को अपने व्यवहार में बदलाव बदलना होगा।
इस समस्या को देखकर सरकार भी गंभीर हुई है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने बच्चों की डिजिटल पढ़ाई के शारीरिक और मानसिक प्रभावों को देखते हुए 'प्रज्ञाता' नाम से डिजिटल शिक्षा संबंधी दिशा-निर्देश भी जारी किए हैं। निर्देशों के अनुसार, "प्री प्राइमरी छात्रों के लिए ऑनलाइन कक्षाएं 30 मिनट से अधिक नहीं होनी चाहिए। इसमें यह भी कहा गया है कि कक्षा 1 से 8वीं तक के 30 से 45 मिनट के दो ऑनलाइन सत्र होने चाहिए, कक्षा 9वीं से 12वीं के लिए 30 से 45 मिनट के 4 सत्र आयोजित होने चाहिए।" (एजेंसी)
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