Home Blogs NIrog Tips आयुर्वेद में मकरसंक्रांति का विशेष महत्व, जाने तिल के लड्डू खाना क्यों है जरूरी ?

आयुर्वेद में मकरसंक्रांति का विशेष महत्व, जाने तिल के लड्डू खाना क्यों है जरूरी ?

By NS Desk | NIrog Tips | Posted on :   04-Jan-2019

तिल के लड्डू बीमारियों से बचाए, मकरसंक्रांति में जरुर खाएं - Til ka Ladoo Health Benefits in Hindi

भारतीय परंपरा में मकरसंक्रांति का विशेष महत्व है और यह पर्व सदियों से मनाया जा रहा है। धार्मिक दृष्टि के अलावा स्वास्थ्य के दृष्टि से भी ये बेहद महत्वपूर्ण पर्व है। इसलिए आयुर्वेद में मकरसंक्रांति का विशेष महत्व है।मकर संक्रांति पर्व मुख्यतः सूर्य पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। एक राशि को छोड़ के दूसरे में प्रवेश करने की सूर्य की इस विस्थापन क्रिया को संक्रांति कहते है, चूँकि सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है इसलिए इस समय को मकर संक्रांति कहा जाता है। इस दिन सूर्य दक्षिणायन से अपनी दिशा बदलकर उत्तरायण हो जाता है अर्थात सूर्य उत्तर दिशा की ओर बढ़ने लगता है, जिससे दिन की लंबाई बढ़नी और रात की लंबाई छोटी होनी शुरू हो जाती है। भारत में इस दिन से बसंत ऋतु की शुरुआत मानी जाती है। अत: मकर संक्रांति को उत्तरायण के नाम से भी जाना जाता है। सूर्य जब उत्तर की ओर गमन करने लगता है तब उसकी किरणें व्यक्ति के सेहत और शांति को बढ़ाती हैं। माना जाता है कि मकर संक्रान्ति के दिन से मौसम में परिवर्तन शुरू हो जाता है। इस दिन से रातें छोटी और दिन बड़े होने लगते हैं और सूर्य के उत्तरी गोलार्द्ध की ओर जाने के कारण ग्रीष्म ऋतु का प्रारम्भ होता है। इसलिए स्वास्थ्य और शरीर के दृष्टिकोण से यह बेहद महत्वपूर्ण समय होता है। इस दिन स्नान करके तिल और गुड़ खाने का प्रचलन है जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है।

मकरसंक्रांति में तिल और गुड़ खाने का फायदा -  Benefits of Eating Sesame and Jaggery in Makar Sankranti in Hindi

भारत पर्व और त्योहारों का देश है। ख़ास बात ये है कि हर पर्व - त्यौहार का अपना एक ख़ास व्यंजन है जिसे खाए बिना वह पर्व पूर्ण नहीं होता। मकरसंक्रांति में मुख्य रूप से तिल और गुड़ खाया जाता है। तिल के लड्डू के बिना मकरसंक्रांति अधूरी है। दरअसल हमारे ऋषि मुनियों ने मकर संक्रांति पर्व पर तिल के प्रयोग को बहुत सोच समझ कर परंपरा का अंग बनाया है। आयुर्वेद के छह रसों में से चार रस तिल में होते हैं, तिल में एक साथ कड़वा, मधुर एवं कसैला रस पाया जाता है। आयुर्वेद के अनुसार यह शरद ऋतु के अनुकूल होता है। मानव स्वास्थ्य की दृष्टि से तिल का विशेष महत्व है, इसीलिए हमारे तमाम धार्मिक तथा मांगलिक कार्यों में, पूजा अर्चना या हवन, यहां तक कि विवाहोत्सव आदि में भी तिल की उपस्थिति अनिवार्य रखी गई है।

तिल वर्षा ऋतु की खरीफ की फसल है। बुआई के बाद लगभग दो महीनों में इसके पौधे में फूल आने लगते हैं और तीन महीनों में इसकी फसल तैयार हो जाती है। इसका पौधा 3-4 फुट ऊंचा होता है। इसका दाना छोटा व चपटा होता है। इसकी तीन किस्में काला, सफेद और लाल विशेष प्रचलित हैं। इनमें काला तिल पौष्टिक व सर्वोत्तम है। सर्दी के मौसम में वातावरण का तापमान बहुत कम होने के कारण शरीर में रोग और बीमारी जल्दी लगते हैं। इस लिए इस दिन गुड और तिल से बने मिष्ठान खाए जाते हैं। इनमें गर्मी पैदा करने वाले तत्व के साथ ही शरीर के लिए लाभदायक पोषक पदार्थ भी होते हैं। इससे हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और शरीर मौसम से लड़ने में सक्षम हो पाता है। कुछ लोग तिल का उबटन लगाकर भी स्नान करते हैं, इससे शरीर स्वस्थ रहता है। यही कारण है कि मकर संक्रान्ति के दिन गुड़ और तिल का महत्व सबसे ज्यादा है। आइये जानते हैं कि मकरसंक्रांति में तिल और गुड़ खाने के क्या-क्या फायदे होते हैं - 

गठिया में लाभदायक :

तिल में कॉपर, मैग्नीशियम, ट्राइयोफान, आयरन,मैग्नीज, कैल्शियम, फास्फोरस, जिंक, विटामिन बी 1 और रेशे प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। एक चौथाई कप या 36 ग्राम तिल के बीज से 206 कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती है। इसके साथ ही जिनकी गठिया की शिकायत बढ़ जाती है, उन्हें इसके सेवन से लाभ होता है।

बैक्टीरिया का खात्मा :

तिल में एंटीऑक्सीडेंट गुण भी पाए जाते हैं। यह रक्त के 'लिपिड प्रोफाइल' को भी बढ़ाता है। तिल शरीर में उपस्थित जीवाणुओं और कीटाणुओं का दमन करता है। तिल एक तरह से इनसेक्टिसाइड का काम करता है।

जुकाम और खांसी में आराम :

सर्दियों में शरीर का तापमान गिर जाता है। ऐसे में हमें बाहरी तापमान से अंदरुनी तापमान को बैलेंस करना होता है। तिल और गुड़ गर्म होते हैं, ये खाने से शरीर गर्म रहता है। सर्दी के मौसम में तिल और गुड़ से बने लड्डू खाने से जुकाम और खांसी में काफी आराम मिलता है।

मकरसंक्रांति में पतंगबाजी और उसका स्वास्थ्य से सम्बन्ध 

इसके अलावा मकरसंक्रांति में पतंग उड़ाने का रिवाज भी है। उस दिन रंग-बिरंगी पतंगों से आसमान भर जाता है। लोग एक-दूसरे की पतंग काटकर फूले नहीं समाते तो बच्चे कुलांचे भरते हुए उल्लास से पतंग लूटते हैं। लेकिन यह सिर्फ उत्सवधर्मिता तक ही सीमित नहीं है। स्वास्थ्य पर भी इसका अनुकूल असर पड़ता है। पतंग उड़ाने के पीछे मुख्य कारण है कुछ घंटे सूर्य के प्रकाश में बिताना। यह समय सर्दी का होता है और इस मौसम में सुबह का सूर्य प्रकाश शरीर के लिए स्वास्थवर्धक और त्वचा व हड्डियों के लिए अत्यंत लाभदायक होता है। गौरतलब है कि धूप कम लेने की वजह से आजकल ढेरों लोग विटामिन - डी की कमी से जूझ रहे हैं। यही वजह है कि आयुर्वेद में मकरसंक्रांति का विशेष महत्व है.

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NS Desk

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डिस्क्लेमर - लेख का उद्देश्य आपतक सिर्फ सूचना पहुँचाना है. किसी भी औषधि,थेरेपी,जड़ी-बूटी या फल का चिकित्सकीय उपयोग कृपया योग्य आयुर्वेद चिकित्सक के दिशा निर्देश में ही करें।