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ClinicsBy NS Desk | NIrog Tips | Posted on : 15-Mar-2022
होली का त्योहार शरीर को कफ से निजात दिलाने के साथ-साथ तीनों दोषों (त्रिदोष) को उनके प्राकृतिक रूप में लाने के लिए भी मनाया जाता है।
होली उत्साह, उल्लास और उमंग का पर्व होने के साथ-साथ स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी बेहद महत्वपूर्ण है। इसके रंगों में स्वास्थ्य का संदेश छुपा है। दरअसल ये रंग नहीं स्वास्थ्य और शरीर के सुरक्षा का भी चक्र है। यही वजह है कि आयुर्वेद में होली को विशेष महत्व दिया गया है। चरक संहिता में होली के आयुर्वेदिक महत्व के बारे में बताया गया है। कहा गया है कि शीतकाल में जमा कफ होली की गर्मी मिलते ही बाहर निकलने लगता है। होली का त्योहार शरीर को कफ से निजात दिलाने के साथ-साथ तीनों दोषों (त्रिदोष) को उनके प्राकृतिक रूप में लाने के लिए भी मनाया जाता है। गौरतलब है कि प्राकृतिक रंगों का प्रयोग करने से शारीरिक विकार दूर हो जाते हैं।
रंगों के उत्सव होली को वसंत ऋतु में मनाया जाता है। शीत ऋतु के बाद वसंत ऋतु आता है । इस लिहाज से होली मौसम में बदलाव का सूचक भी है। यहाँ से अत्यधिक ठंढ से अत्यधिक गर्मी की ओर मौसम बढ़ता है। इस मौसम में पहले से जमा हुआ कफ शरीर में पिघलना शुरू कर देता है जिससे कफ से संबंधित समस्याएं और बीमारियाँ पैदा होती है। होलिका दहन का एक प्रयोजन इस कफ का नाश करना है। होलिका दहन में लकड़ियों को जमा कर आग जलाई जाती है। हालाँकि होलिका दहन की अपनी धार्मिक मान्यताएं भी है। इसे बुराई पर अच्छाई की जीत के तौर पर भी देखा जाता है। लेकिन इसका स्वास्थ्य लाभ ये है कि इसकी गर्मी से कफ के विकारों का नाश हो जाता है। ये स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है। यह महामारी और संक्रमण को रोकता है। आग के नजदीक रहने से शरीर को अत्यधिक गर्मी मिलती है जो शरीर को संक्रमण के प्रतिरोधी बनाने में मदद करता है और साथ ही कफ का नाश भी होता है।
साइनस के लिए भी ये फायदेमंद है। औषधीय धुंए के कई और भी फायदे हैं। ठंढे मौसम के चलते वातावरण में असंख्य रोग बढाने वाले जीव (वायरस/बैक्टीरिया) उत्पन्न हो जाते हैं। यही कई बीमारियों को जन्म देते हैं। किंतु होलिका दहन के साथ-साथ यह किटाणु काफी हद तक समाप्त हो जाते हैं। होलिका दहन के समय अग्नि में घी, धूप, खाद्य सामग्री आदि अर्पित किया जाता है। इससे जो धुंआ उठता है उससे वातावरण शुद्ध होता है। घी, कपूर व धूप वातावरण में मौजूद नकारात्मक ऊर्जा का नाश करते हैं।
होली वसंत ऋतु में होता है और इसे 'कामदेव' का काल (समयावधि) भी कहा जाता है और संतानोत्पति (प्रजनन क्षमता) के लिए इसे बेहतर समय माना जाता है। गौरतलब है कि कामदेव को हिंदू शास्त्रों में प्रेम और काम का देवता माना गया है। वसंत उनका मित्र है और पुष्प रुपी धनुष से वे प्रेम के वाण छोड़ते हैं।
होलिका दहन की अग्नि रोगों को जलाता है तो रंग हमारे जीवन में उत्साह भरता है और इसके रंग हमारी समस्त भावनाओं को जाहिर करती है। मसलन लाल रंग क्रोध का परिचायक है तो गुलाबी रंग प्यार का प्रतीक, सफ़ेद रंग शांति तो भगवा रंग त्याग का प्रतीक है। दरअसल होली के रंगों में स्वास्थ्य का संदेश छुपा हुआ है. लाल रंग हृदय की सेहत का, पीला रंग सुंदरता का, हरा रंग विषहरण (detoxification) का,उजला रंग शरीर की प्रतिरोधक क्षमता का, बैगनी रंग दीर्घायु जीवन का और नारंगी रंग कैंसर से सुरक्षा का सूचक है. ये रंग नहीं स्वास्थ्य और शरीर के सुरक्षा का चक्र है।
कहने का तात्पर्य है कि होली रंगों के माध्यम से भावनाओं को अभिव्यक्त करने का भी पर्व है। इस उत्सव में हम खुलकर अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हैं। एक-दूसरे को रंग लगाते हैं और अच्छा महसूस करते हैं। आनंद की अनुभूति होती है। क्रोध, जलन और प्रतिशोध की भावना को छोड़कर गले-लगकर एक-दूसरे को रंग लगाते हैं। इससे मन के विकारों यथा तम और रज का नाश होता है और हमारा मन निर्मल और स्वच्छ होता है। इसका स्वास्थ्य पर अच्छा असर पड़ता है।
आयुर्वेद की सत्वावजय चिकित्सा में इस बात वर्णन मिलता है। सत्वावजय चिकित्सा में कहा गया है कि जबतक हम मन और आत्मा को स्वस्थ करने के लिए यत्न नहीं करेंगे तब तक निरोग काया की कल्पना कठिन है। इस दृष्टिकोण से होली हमारे मन और आत्मा को उत्साह व उमंग से भरकर और तम व रज को दूरकर हमे निरोग काया प्रदान करने में अहम भूमिका निभाता है।
पलाश के पुष्प से बना रंगीन जल अब भी कई जगहों पर होली खेलने में उपयोग में लाया जाता है। यह रंगीन जल स्वास्थ्य के लिए अति उत्तम है और हमें अनेक चर्म रोगों से बचाता है। हर्बल होली के कई और भी फायदे हैं. स्पष्ट है कि होली महज सिर्फ एक पर्व नहीं, स्वास्थ्य के दृष्टि से भी इसका विशेष महत्व है. ये हममे उमंग और उर्जा भरकर नवजीवन का संचार करता है.
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