Home Blogs NIrog Tips बरसात में स्वस्थ्य रहना है तो आयुर्वेद के इन टिप्स को अपनाएँ

बरसात में स्वस्थ्य रहना है तो आयुर्वेद के इन टिप्स को अपनाएँ

By Dr Pooja Kohli | NIrog Tips | Posted on :   03-Aug-2019

Ayurveda Health Tips In Rainy Season Hindi

आयुर्वेद में ऋतुओं का बहुत अधिक महत्व है. मौसम परिवर्तन का स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है. ऋतु के हिसाब से ही खान-पान और स्वास्थ्य रक्षण के तरीके आयुर्वेद में वर्णित है. साल में छह ऋतु होते हैं जिसमें से वर्षा ऋतु विसर्ग काल में आती है. विसर्ग काल वो होता है जिसमें हमारे शरीर की शक्ति धीरे-धीरे बढ़ने लगती है. लेकिन वर्षा ऋतु के पहले 15 दिन हमारे शरीर की शक्ति कम रहती है. शक्ति कम रहने से मतलब है कि हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्युनिटी शक्ति) कम होती है. पाचन शक्ति (डायजेस्टिव पावर) भी कम होती (लो) होती है. इसलिए इस समयकाल में हमें अपने खान-पान और स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखना पड़ता है. बारिश के मौसम में मलेरिया, डेंगू, सर्दी-खांसी, उलटी, टाईफाइड, त्वचा रोग, पीलिया इत्यादी अनेक रोग फैलते है. आयुर्वेद में बताये गए सुझावों को मानकर हम बारिश के मौसम में अपने आप को स्वस्थ्य रख सकते हैं. आइए जानते हैं, ऐसे ही कुछ उपायों के बारे में -

1-बरसात के मौसम में खान-पान का ध्यान

बारिश के मौसम में यदि हम भारी खाना खाते हैं तो यह आसानी से नहीं पचता. इससे हमारे शरीर में बीमारियों के पनपने की संभावना रहती है. कहने का तात्पर्य ये है कि इस मौसम में अग्नि कमजोर होती है और यदि उसके बावजूद हम भारी खाना खाते हैं तो वह पाचन प्रणाली पर बुरा असर डालती है. इसलिए ऐसे समय में हमें हल्का खाना (लाईट फूड) लेना चाहिए. बाहर का खाना बिल्कुल नहीं खाना चाहिए. हमेशा ताजा फल, सब्जियों और घर में बना खाना ही खाना चाहिए. बासी खाने से बचना चाहिए. बरसात के मौसम में खान-पान में विशेष एहतियात की जरुरत है.(foods during rainy season)

2-पानी पीने में एहतियात जरुरी 

वर्षा ऋतु में पानी से संबंधित कई बीमारियाँ होती है. इसलिए पानी पीने में सावधानी बरतने की जरुरत है. पानी को उबाल कर और छानकर पीना ज्यादा बेहतर होगा. श्रेयस्कर होगा कि इस मौसम में हमेशा गर्म या गुनगुना पानी ही पीएं. गर्म पानी से हमारे शरीर के जितने भी दोष होते हैं वह दूर होते हैं और अग्नि की शक्ति धीरे-धीरे बढ़ती है. इससे हम जो भी आहार ग्रहण करते हैं, उसके पचने में कोई दिक्कत नहीं होती. पानी खूब पीना पीना चाहिए.

3-जीवनशैली में परिवर्तन की जरुरत 

वर्षा ऋतु में जीवनशैली (लाइफस्टाइल) में आवश्यक बदलाव जरुरी है . इसके पहले गर्मी होता है. गर्मी में आप दिन में सो सकते हैं. लेकिन वर्षा ऋतु में ऐसा करना स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से उचित नहीं. क्योंकि इस मौसम में वात भरा हुआ रहता है और पित्त का संचय होता है. कहने का अर्थ है कि इस मौसम में तीनों दोषों का असंतुलन रहता है. इसे संतुलित करने के लिए संतुलित आहार (प्रोपर डाईट) और जीवनशैली (लाइफस्टाइल) की जरुरत होती है.

4-तेल की मालिश जरुरी 

इस मौसम में फंगल इंफेक्शन के खतरे भी ज्यादा होते हैं. इसलिए इस मौसम में रोज शरीर पर तेल लगाना चाहिए. यदि प्रतिदिन लगाना मुश्किल हो तो हफ्ते में एक बार नीम और तिल का मिक्स तेल जरूर लगाना चाहिए.

5-गीले कपड़े पहनने से बचे 

बारिश के मौसम में सूर्य बादलों से ढंका रहता है. इसलिए कपड़े सूखाने में दिक्कत होती है. कपड़े या तो ठीक से नहीं सूखते या फिर उनमें नमी रह जाती है और हम ऐसे ही कपड़े पहनकर काम पर निकल जाते हैं. लेकिन ऐसे गीले कपड़े पहनने से बचना चाहिए, ताकि फंगल या बैक्ट्रियल इंफेक्शन आपको न हो.

6-गरम पानी से नहाना चाहिए 

बारिश के मौसम में हल्की ठंढ सी भी रहती है. ऐसे मौसम में गरम पानी से नहाना भी सही होगा क्योंकि वह ‘वात’ का शमन करता है. तेल लगाने के आधे या एक घंटे बाद गर्म पानी से नहाना श्रेयस्कर होगा.

7-पंचकर्म थेरेपी से फायदा होगा 

इस मौसम में शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर रहती है. इसलिए हमें अपने आप को संभाल के रखना पड़ता है जिसके कि वात और बाकी दोषों का प्रकोप न हो. इसलिए आयुर्वेदिक दवाइयों के अलावा पंचकर्म थेरेपी की मदद ली जा सकती है. यह सबसे उत्तम उपाय है.

पंचकर्म के ‘स्नेहन’ और ‘स्वेदन’ के साथ ‘बस्ती’ थेरेपी करवाया जा सकता है. यह सबसे अच्छा तरीका है. बस्ती को वैसे भी अर्द्ध चिकित्सा माना जाता है. इसका सबसे बड़ा फायदा ये है कि यह वात के दोष को कम करता है. इस समय कुछ लोगों का पित्त भी बिगड़ा रहता है. उन्हें विरेचन कराना चाहिए.

 

Dr Pooja Kohli

NirogStreet

M.D.(Ayurveda). Speciality in Panchkarma & treating for health issues in female patients.

डिस्क्लेमर - लेख का उद्देश्य आपतक सिर्फ सूचना पहुँचाना है. किसी भी औषधि,थेरेपी,जड़ी-बूटी या फल का चिकित्सकीय उपयोग कृपया योग्य आयुर्वेद चिकित्सक के दिशा निर्देश में ही करें।