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ClinicsBy NS Desk | Herbs and Fruits | Posted on : 11-Nov-2022
आयुर्वेदिक औषधि के रूप में दारुहरिद्रा (Daruharidra) लोकप्रिय है। इसे भारतीय बरबेरी (Indian barberry) या हल्दी ट्री (Tree Turmeric) के नाम से भी जाना जाता है।
प्राचीनकाल से ही कई बीमारियों और स्वास्थ्य समस्याओं के उपचार के लिए आयुर्वेदिक औषधि के रूप में दारुहरिद्रा (Daruharidra) लोकप्रिय है। इसे भारतीय बरबेरी (Indian barberry) या हल्दी ट्री (Tree Turmeric) के नाम से भी जाना जाता है। यह पीले या भूरे रंग का लकड़ी का पौधा होता है जो ज्यादातर श्रीलंका, भूटान और यूरोप और अमेरिका के कुछ हिस्सों में पाया जाता है। सदियों से इस औषधीय जड़ी बूटी का उपयोग विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं और बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता रहा है। स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से यह भारतीय आयुर्वेद की सबसे महत्वपूर्ण औषधियों में से एक है। इसमें असाधारण औषधीय गुण (फल और तना में) पाए जाते हैं। इसका तना भूरे रंग का होता है और पाउडर, टैबलेट या क्वाथ के रूप में उपयोग में लाया जाता है। दारुहरिद्रा फल विटामिन सी (Vitamin C) से भरपूर होता है और उस रूप में भी उसका इस्तेमाल किया जा सकता है।
दारुहरिद्रा या भारतीय बरबेरी को दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। ट्री हल्दी (Tree Turmeric) इसका सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला नाम है। इसे बर्बेरिस अरिस्टाटा (Berberis aristata), भारतीय बेरीबेरी (Indian beriberi), दारू हल्दी (Daru Haldi), मारा मंजल (Mara manjal), कस्तूरीपुष्पा (Kasturipushpa), दारचोबा (Darchoba), मरमन्नल (Maramannal), सुमालु (Sumalu), दरहल्ड (Darhald) आदि के नाम से भी जाना जाता है।
आयुर्वेद पांच मानदंडों रस, गुण, विपाक, वीर्य और कर्म पर आधारित होता है और इसी आधार पर किसी भी पदार्थ का वर्गीकरण होता है। गुणों से भरपूर दारुहरिद्रा के पौधे आयुर्वेद के अनुसार निम्नलिखित गुणों से युक्त हैं -
दारुहरिद्रा को प्राचीन काल से ही सूजन और सोरायसिस (inflammation and psoriasis) जैसे त्वचा रोगों (skin diseases) के इलाज के लिए उपयोगी माना जाता है। पौधे के एंटी-इंफ्लेमेशन और एंटी-बैक्टीरियल गुणों (anti-inflammation and anti-bacterial properties) के कारण मुंहासों को भी रोकने की क्षमता इसमें व्याप्त है। आयुर्वेद बताता है कि दारुहरिद्रा चूर्ण को गुलाब जल में मिलाकर लगाने से सूजन (inflammation) में आराम मिलता है और मुंहासे (acne) कम होते हैं। अपने गुणों के कारण दारुहरिद्रा जलन और घावों (burns and wounds) के उपचार में भी उपयोगी सिद्ध होता है।
कई आयुर्वेदिक विशेषज्ञों का मानना था कि दारुहरिद्रा वात और पित्त (Vata and Pitta) को नियंत्रित करने वाली गतिविधि और यकृत विकार (liver disorder) से लड़ने के कारण लीवर एंजाइम (liver enzyme) को बनाए रखता है। दारुहरिद्रा के कफ गुण (Kapha property) का उपयोग पेट के कई विकारों के रोग को ठीक के लिए भी किया जाता था।
आयुर्वेद में दस्त (diarrhea) और भारी मासिक धर्म प्रवाह (heavy menstrual flow) के प्रबंधन के लिए भी दारुहरिद्रा का उपयोग किया जाता रहा है। दारुहरिद्रा के प्रयोग से अतिसार (Diarrhea) ठीक हो जाता है क्योंकि यह पाचक गुणों से भरपूर होता है। दारुहरिद्रा के कषाय (Kashaya) या कसैले गुण का उपयोग आयुर्वेद के अनुसार महिलाओं में मासिक धर्म के प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए भी किया जाता था।
यह माना जाता था कि दारुहरिद्रा में उष्ण या गर्म शक्ति (Ushna or hot potency) होती है जो पाचन स्वास्थ्य (digestive health) में सुधार करती है और शरीर के चयापचय (metabolism of the body) को बढ़ाती है। दवा की शक्ति के कारण रक्त शर्करा (blood sugar) का स्तर शरीर में नियंत्रित होता है और इसलिए इसे मधुमेह रोगियों के लिए उपयोगी माना जाता था। प्राचीन ग्रंथों के अनुसार 'अमा' (Ama) जो हमारे शरीर का विष (toxin) है उसे भी दारुहरिद्रा की सहायता से कम किया गया।
विभिन्न उपचारों में दारुहरिद्रा का उपयोग करने के लाभ - Benefits of using Daruharidra in various treatments in Hindi
अब तक किए गए कई अध्ययनों ने दारुहरिद्रा के लाभकारी प्रभावों को कई तरह से दिखाया है। कम जोखिम वाला रोग हो या उच्च जोखिम वाला रोग, दारुहरिद्रा इन रोगों के उपचार में उत्प्रेरक (catalyst) का कार्य करता रहा है। यह पीलिया, नेत्रश्लेष्मलाशोथ, मुँहासे, हृदय रोग (jaundice, conjunctivitis, acne, heart disease) आदि जैसी कई बीमारियों और स्वास्थ्य समस्याओं के उपचार में भी कार्य करता है। दारुहरिद्रा के कुछ अद्भुत उपयोग हैं -
लीवर की बीमारी में दारूहरिद्रा - Daruharidra in liver disease in Hindi
लीवर की बीमारी के उपचार में दारूहरिद्रा उपयोगी जड़ी-बूटी है। आधुनिक विज्ञान भी इसे मान्यता देता है। आधुनिक विज्ञान का दावा है कि दारुहरिद्रा को गैर-मादक वसायुक्त यकृत रोग (nonalcoholic fatty liver disease) या NAFLD के इलाज में कारगर है। दारुहरिद्रा में मौजूद बर्बेरिन (Berberine) ट्राइग्लिसराइड्स (triglycerides) के स्तर को कम करने के लिए जिम्मेदार होता है और लीवर एंजाइम एएलटी (liver enzyme ALT) और रक्त में एएसटी (AST in the blood) को कम करता है। दारुहरिद्रा के सेवन से इंसुलिन रेजिस्टेंस (insulin resistance) और फैटी लीवर (fatty liver) को नियंत्रित किया जाता है। इसके अलावा, दारुहरिद्रा के एंटीऑक्सीडेंट, एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण (antioxidant, anti-inflammatory properties) लीवर की कोशिकाओं को होने वाले नुकसान से बचाते हैं।
पीलिया की बीमारी में दारूहरिद्रा - Daruharidra in jaundice disease in Hindi
दारूहरिद्रा पीलिया के इलाज में मदद करता है। चूंकि दारुहरिद्रा एंटीऑक्सिडेंट और यकृत-सुरक्षात्मक गुणों से समृद्ध है, इसलिए यह पीलिया के प्रबंधन के लिए भी फायदेमंद साबित होता है।
मलेरिया की बीमारी में दारूहरिद्रा - Daruharidra in Malaria disease in Hindi
मलेरिया की बीमारी के उपचार में भी दारूहरिद्रा उपयोगी सिद्ध होता है। मलेरिया परजीवी (Malarial parasite) या प्लास्मोडियम (plasmodium) मलेरिया रोग के लिए उत्तरदायी है। दरहरिद्र की छाल (Darharidra bark) एंटी प्लास्मोडियल और मलेरिया-रोधी गतिविधि (anti plasmodial and anti-malarial activity) में समृद्ध (rich) है। दारुहरिद्रा की छाल को कैप्सूल, पाउडर या टैबलेट के रूप में लेने से मलेरिया रोग की रोकथाम होती है।
रक्तस्राव में दारूहरिद्रा - Daruharidra in Menstrual Bleeding in Hindi
यह भारी मासिक धर्म रक्तस्राव को नियंत्रित (Regulates heavy menstrual bleeding) करता है। आयुर्वेद के अनुसार, दारुहरिद्रा के सेवन से मासिक धर्म में भारी रक्तस्राव या मासिक धर्म के दौरान अत्यधिक रक्त स्राव नियंत्रित होता है। पौधे के कसैले या कषाय गुण (Kashaya properties) रक्त के नियमन में मदद करते हैं। मासिक धर्म के दौरान होने वाले भारी रक्तस्राव को नियंत्रित करने के लिए - ½ चम्मच दारुहरिद्रा चूर्ण को दूध या शहद के साथ लेने की सलाह दी जाती है।
हृदय रोग में दारूहरिद्रा - Daruharidra in Heart Failure in Hindi
दिल की बीमारी (heart failure) के प्रबंधन के मामले में दारूहरिद्रा फायदेमंद साबित होता है। आधुनिक वैज्ञानिक का दावा है कि दारुहरिद्रा को हृदय गति रुकने के कारणों और लक्षणों के प्रबंधन में लाभकारी माना जा सकता है।
►क्या दारुहरिद्रा से बुखार ठीक होता है (Does Daruharidra cure fever) ?
आयुर्वेद के अनुसार ज्वर को ठीक करने के लिए दारुहरिद्रा का प्रयोग किया जाता है।
►दारुहरिद्रा के विभिन्न तत्व क्या हैं?
विज्ञान विशेषज्ञों के अनुसार, दारुहरिद्रा के फल विटामिन सी से भरपूर होते हैं, जड़ और छाल बेर्बेरिन और आइसोक्विनोलिन अल्कलॉइड से भरपूर होते हैं। दारुहरिद्रा में मौजूद इन तत्वों से एंटी-माइक्रोबियल, एंटीऑक्सीडेंट, एंटी-डायबिटिक, एंटी-ट्यूमर और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण मिलते हैं।
►क्या दारुहरिद्रा चूर्ण बाजार में मिल सकता है?
दारुहरिद्रा पाउडर बाजार में ऑनलाइन और आयुर्वेदिक मेडिकल स्टोर दोनों पर उपलब्ध है।
►क्या दारुहरिद्रा को लिपिड कम करने वाली दवा के साथ लेना सुरक्षित है?
दारुहरिद्रा की मदद से कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम किया जा सकता है। दारुहरिद्रा के सेवन से एलडीएल और खराब कोलेस्ट्रॉल भी कम होता है।
►दारुहरिद्रा मधुमेह रोगियों के लिए कैसे सहायक है?
दारुहरिद्रा लोकप्रिय रूप से शरीर के चयापचय को बढ़ाने के लिए जाना जाता है, जो बदले में रक्त शर्करा के स्तर का प्रबंधन करता है। दवा की उष्ण या गर्म प्रकृति शरीर की अमा या विष सामग्री को कम करने में मदद करती है।
►क्या दारुहरिद्रा वजन घटाने में मदद कर सकती है?
हाँ। दारुहरिद्रा शरीर के चयापचय में सुधार करती है और इसलिए वजन घटाने में मदद करती है। उष्णा या जड़ी-बूटी का गर्म गुण शरीर से अतिरिक्त चर्बी को दूर करता है। अमा या विषाक्त पदार्थ भी काफी कम हो जाते हैं, जिससे वजन कम होता है।
►दारुहरिद्रा त्वचा के लिए कैसे फायदेमंद है?
आयुर्वेद के अनुसार दारुहरिद्रा अपने रोपन (हीलिंग), कषाय (एस्ट्रिंजेंट) और पित्त-कफ संतुलन गुणों के कारण खुजली, जलन, संक्रमण या सूजन जैसी त्वचा की समस्याओं को ठीक करती है।
►क्या दारुहरिद्रा उदर विकारों के उपचार में सहायक है?
हाँ। आयुर्वेदिक विशेषज्ञ के अनुसार हमारे शरीर में पित्त दोष अपच और भूख न लगना जैसे उदर विकारों का प्रमुख कारण है। जड़ी-बूटी के दीपन या भूख बढ़ाने वाले और पचन या पाचन गुण विकारों का प्रबंधन करते हैं और भूख को बढ़ाते हैं।
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