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ClinicsBy NS Desk | Herbs and Fruits | Posted on : 23-Mar-2021
आयुर्वेद के अनुसार एलोवेरा के फायदे और नुकसान हिंदी में (Ayurveda ke Anusar Aloevera ke Fayde aur Nuksan in Hindi) - एलोवेरा एक रसीला या गूदेदार पौधा होता है। यह पौधा एलोय प्रजाति से संबंध रखता है। यह दिखने में कैक्टस जैसा होता है और इसकी पत्तियों में साफ-सुथरा जेल उपलब्ध पाया जाता है। इसका निकास अरब प्रायद्वीप से हुआ है और यह विश्व के उष्ण उपोष्ण तथा शुष्क जलवायवीय क्षेत्रों में उगता है। इसके औषधीय गुणों को देखते हुए काफी लंबे समय से इसकी खेती भी की जाती है। इसके अतिरिक्त इसे आंतरिक सजावट के लिए भी प्रयोग किया जाता है एवं गमलों में भी उगाया जाता है। एलोवेरा की विविध किस्में पाई जाती हैं मगर इसकी सामान्य रूप से उपयोग में ली जाने वाली किस्म एलोय बरबाडेनसिस है। एलोवेरा का उपयोग विभिन्न त्वचा रोगों, जैसे- मुहांसों, दाग-धब्बों आदि के लिए किया जाता है। इसका उपयोग बालों से संबंधित समस्याओं के उपचार के लिए भी किया जाता है। यह बालों की रूसी तथा उनकी हानि का सफलतापूर्वक उपचार कर सकता है। इस पौधे का उपयोग अनेक प्रकार के वाणिज्यिक उत्पाद, जैसे कि पेय पदार्थों, त्वचा की देखभाल से संबंधित उत्पादों, मरहम, प्रसाधन सामग्री आदि बनाने के लिए किया जाता है। हालांकि इस पौधे के क्षार के प्रसाधन सामग्री में इस्तेमाल के प्रभावों या सुरक्षा के संबंध में बहुत कम वैज्ञानिक साक्ष्य मौजूद हैं मगर फिर भी इसका उपयोग बड़े पैमाने पर होता है।
इस पौधे के विषय में जानकारी
एलोवेरा का पौधा तना रहित या फिर बहुत ही छोटे तने वाला होता है और यह 60 से 100 सेंटीमीटर तक की ऊंचाई में बढ़ता पाया जाता है। इसकी पत्तियां हरी तथा रसीली होती हैं।इसकी पत्तियों के किनारों पर सफेद रंग के कांटें होते हैं और गरमी के मौसम में इस पौधे पर फूल भी आते हैं। एलोवेरा का पौधा अराबुसकुलर माइकोराइबिस की रचना करता है। यह एक सहजीवी होता है जो इस पौधे की मिट्टी में मौजूद पोषक तत्वों तथा खनिजों तक बेहतर पहुंच कायम करता है।
इस पौधे का जन्म स्थान अरब प्रायद्वीप है मगर यह संसार के समस्त भागों में उगाया जाता है तथा यह उत्तर अफ्रीका, सूडान तथा उसके पड़ोसी देशों में पूर्णतः अनुकूलित हो गया है।इस पौधे का चीन तथा यूरोप के देशों से परिचय 17वीं शताब्दी में हुआ था। यह कठोर जलवायु और शीतोष्ण महाद्वीपों के उष्ण भागों में आसानी से उगाया जा सकता है। वर्तमान में यह पौधा संसार के लगभग सभी भागों में उगाया जाता है। इसे घरों की सजावट या शोभा के लिए तथा अन्य खाली जगहों पर उगाया जाता है। इस पौधे के औषधीय उपयोग, सुंदर रूप तथा आकर्षक फूलों की लिहाज से उद्यानों में बहुत अधिक संख्या में उगाया जाता है।
अनुकूल जलवायु तथा परिस्थितियां
यह पौधा बहुत कम वर्षा वाले क्षेत्रों में आसानी से उग सकता है और चट्टानी क्षेत्र तथा कम देखभाल वाले उद्यान इसके लिए आदर्श जगह माने जाते हैं। इसे बहुत कम मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है और इसीलिए यह उन लोगों के लिए बेहतर पौधा है जो अपने घरों में ऐसे पौधे उगाने के इच्छुक होते हैं जिन पौधों बहुत कम देखभाल करके उगाया जा सके। इस पौधे को पीड़कों या कीटों से कोई ज्यादा खतरा नहीं होता है मगर फिर भी कुछ मकड़ियां तथा कीट इसे कुछ नुकसान पहुंचा सकते हैं। इस पौधे को गमले में लगाते समय इस बात पर विशेष ध्यान दें कि इसके लिए रेतीली या बलुई मिट्टी अच्छी रहती है तथा इसे खुली या धूपदार जगह पर रखना अनिवार्य होता है। इस बात पर भी खास ध्यान दें कि अत्यधिक धूप इस पौधे को जला सकती है तथा यदि गमले से पानी की निकासी का उचित प्रबंध न हो तो भी यह खराब हो सकता है। गमले में इस पौधे के चारों तरफ इसके नए वा नन्हे पौधे उग आते हैं। अतः उनको हटाकर इस पौधे की वृद्धि को बरकरार रखना अनिवार्य है। सर्दी की ऋतु में यह पौधा निष्क्रिय हो जाता है क्योंकि इस पौधे को बहुत ही कम नमी की आवश्यकता होती है। हिमपात वाले शीतल क्षेत्रों में इसे घर के अंदर या उष्ण कांच घरों में रखना उचित रहता है।
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एलोवेरा में अनेक प्रकार के उपचारात्मक गुण मौजूद पाए जाते हैं तथा इसे “अमरत्व का पौधा” माना जाता था और इसे मिश्र के फराहों को अंत्येष्टि उपहार के तौर पर दिया जाता था। समय के साथ-साथ अनेक मानव समूह इसका उपयोग विभिन्न उद्देश्यों के लिए करने लगे और आज भी कर रहे हैं। ऐसा माना जाता है कि यह पौधा कई प्रकार के रोगों जैसे- घावों, बालों की हानि, बवासीर, पाचन संबंधी समस्याएं आदि के उपचार में सहायक होता है। वर्तमान में अनेक उद्योगों में इसका इस्तेमाल होता है। इस पौधे द्वारा निर्मित जेल से प्रसाधन सामग्री तथा अनेक तरह के व्यक्तिगत उत्पाद, जैसे- मोशराइजर्स, साबुन, शेविंग क्रीम, लोशन आदि तैयार किए जाते हैं। एलोवेरा अनुपूरकों के रूप में भी मिलता है। यह त्वचा तथा पाचन तंत्र के लिए काफी फायदेमंद होता है। एलोवेरा के पौधे के ऐसे दो उपयोगी भाग होते हैं जिनक उपयोग चिकित्सा या उपचार के लिए किया जा सकता है। इसका यह पहला भाग इसकी पत्तियां होता है जिनमें पारदर्शी जेल भरा होता है। इसकी पत्तियों से प्राप्त इस जेल का प्रयोग जले हुए तथा अन्य त्वचा रोगों के उपचार हेतु किया जाता है। इस जेल को तरल पदार्थ या कैपसूल का रूप भी दिया जाता है जिनका मौखिक रूप से सेवन किया जाता है। एलोवेरा से प्राप्त होने वाला दूसरा महत्वपूर्ण पदार्थ इसका क्षार होता है। यह एक पीले रंग की लुग्दी होती है जो इसकी पत्तियों के बाह्य भागों में उपस्थित पायी जाती है। एलोवेरा का क्षार मृदु विरेचक होता है तथा इसके मौखिक सेवन से कब्ज के उपचार में मदद मिलती है। एलोवेरा का अत्याधुनिक उपयोग इसके पेय पदार्थ बनाने में किया जाता है, जैसे कि एलोवेरा जूस तथा एलोवेरा पानी आदि। एलोवेरा का जूस बनाने के लिए खट्टे जूस में इसके जूस को मिला दिया जाता है और इसका पानी बनाने के लिए इसके जूस में पानी को मिलाना पड़ता है। एलोवेरा के शुद्ध जूस का स्वाद कुछ तीखा होता है। इसीलिए इसके अनेक उत्पादों में स्वाद के लिए मीठे पदार्थ मिला दिए जाते हैं। इसके ऐसे उत्पाद को खरीदते समय इसके घटकों पर अवश्य ध्यान दें और जांच लें कि इसमें चीनी तो नहीं मिलाई गयी है।
हांलाकि वैज्ञानिक तौर पर यह सिद्ध नहीं होता है कि एलोवेरा की मदद से समस्त शारीरिक स्वास्थ्य समस्याओं का उपचार हो सकता है मगर फिर भी इससे अनेक संभावित लाभ प्राप्त होते हैं, जैसेकि यह व्यक्ति के पाचन तंत्र को सुधारता है, त्वचा की समस्याओं का उपचार करता है तथा सनबर्न से राहत देने व घावों को भरने में मदद करता है। यह कब्ज के उपचार में मदद कर सकता है,क्योंकि इसके क्षीर में एलोयन निहित होता है जो एक एंथ्राक्युनोन होता है तथा एलोवेरा को मृदु विरेचक बनाता है। अतः इसी कारण यह कब्ज से छुटकारा दिलाने में योग देता है। यह त्वचा से संबंधित कई समस्याओं जैसे कि दाग-धब्बों, मुहांसों आदि के उपचार में भी सहायक होता है, क्योंकि इसका त्वचा पर शीतल या शांत करने वाला प्रभाव पड़ता है जिस कारण उत्तेजना, खुजली, प्रदाहकता आदि में आराम देखने को मिलता हो। अपनी शीत प्रकृति के कारण एलोवेरा सनबर्न से भी राहत देता है। वैज्ञानिक शोध यह भी दर्शाते हैं कि दो सप्ताह तक एलोवेरा के जूस के दो चम्मच प्रतिदिन पीने से मधुमेह टाइप-2 के रोगियों में रक्त शर्करा के स्तर को कम करने में मदद मिल सकती है। इससे व्यक्ति ह्रदय रोग का शिकार होने से बच सकता है।
ध्यान में रखने योग्य कुछ खास बातें
जब हम एलोवेरा के पौधे का जिक्र करते हैं तो केवल इसके लाभों तथा औषधीय गुणों की ही बात करते हैं। जबकि हमें इसके दुष्प्रभावों तथा इसके कारण पैदा होने वाले स्वास्थ्य संबंधी जोखिम के विषय में भी अवश्य चर्चा करनी चाहिए। इस पौधे में उपस्थित एलोय जेल का उपयोग सामान्यतः सुरक्षित होता है और इसे मोशराइजर्स तथा फेस क्रीम में मिलाया जाता है मगर एलोय क्षीर हानिकारक भी हो सकता है। एलोय क्षीर का मौखिक रूप से सेवन ऐंठन या क्रैंप्स तथा डायरिया का कारण बन सकता है और साथ ही यह किसी अन्य दवाई के प्रभाव को भी कम कर सकता है। इसके अतिरिक्त इसका दूसरा सबसे गंभीर दुष्प्रभाव यह है कि इसके प्रतिदिन के बार-बार के सेवन से किडनी खराब होने का खतरा भी रहता है। यह रक्त ग्लूकोज के अत्यधिक कम कर सकता है और इसीलिए मधुमेह टाइप-2 के रोगियों को सावधान रहने की खास जरूरत है।
अतः उन्हें सलाह दी जाती है कि इसके क्षीर को अपने दैनिक आहार में शामिल करने पूर्व चिकित्सक से संपर्क अवश्य कर लें। एलोय के क्षीर में कैंसर का कारण बनने वाले तत्व भी मौजूद रहते हैं। एलोवेरा के जेल और जूस को ठंडी जगह पर रखने का सुझाव दिया जाता है, मगर इसे आर्द्र या नम जगह पर कभी नहीं रखना चाहिए। इसे सामान्य तापमान पर रखना चाहिए फ्रिज आदि में कभी नहीं रखना चाहिए, क्योंकि इस प्रकार इसके उत्पाद पर गंभीर दुष्प्रभाव पड़ता है। एलोवेरा के जूस की बोतल मुख्यतः ऐम्बर रंग की पायी जाती हैं। बोतल का गहरा रंग होने से इसके घटक प्रकाश के कारण प्रभावित होने से बच जाते हैं। एलोवेरा को एक अनुपूरक समझा जाता है तथा अनुपूरक खाद्य एवं औषधि मंत्रालय द्वारा नियंत्रित नहीं किए जाते हैं। इसी कारण इस पेय की वैधता तथा सुरक्षा के विषय में जानकारी प्राप्त करने का कोई निश्चित तरीका नहीं है। अधिकांश उत्पाद एलोवेरा के रूप में समृद्ध होने का दावा करते हैं जबकि अनेक उत्पादों में इसका बहुत कम अंश होता है या फिर बिलकुल भी नहीं होता है।
एलोवेरा के कुछ अन्य नाम भी हैं जिनमें एलो बर्बाडेनसिस मिल, घृतकुमारी, घीकुमारी, खोरपड, घीकवर, ,मुसाभर, मचाम्बर, घृतकलमी, इंडियन एलोय, एलियो, इरियो, मुसाभर, एलवा, करिबोला, लोलेसरा सत्व, लोवलसारा, लोलेसरा, मुसब्बर, सिबर, चेनिनयक्म, कोरफड, मुसाबरा, कलसोहागा, मुस्सबर, अलुआ, कट्टजही, सत्तुक्कथजही, सुसम्बरम, मुसब्बर, एलिवा, सिबेर आदि सम्मिलित हैं।
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अनेक अध्ययन यह साबित करते हैं कि एलोवेरा से विभिन्न प्रकार के स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होते हैं। मगर इस विषय में वैज्ञानिक तथा आयुर्वेदिक मतों में काफी अंतर पाया जाता है।
● कब्ज के लिए एलोवेरा के फायदे
आयुर्वेद- आयुर्वेद के मुताबिक़ कब्ज की समस्या वात दोष की गड़बड़ी का परिणाम होती है। इसके कई कारण होते हैं,जैसे- जंक फूड या अस्वास्थ्यकर भोजन का सेवन, चाय या काफी का ज्यादा मात्रा में सेवन, देर रात तक जागना, उच्च तनाव स्तर, दुश्चिंता आदि। ये सभी कारक बड़ी आंत में वात की गड़बड़ी पैदा कर कब्ज का कारण बनते हैं। एलोवेरा अपनी वातनाशक तथा भेदन प्रकृति की वजह से ठोस मल को तोड़ने या नरम बनाने का काम करता है और इससे कब्ज में राहत मिलती है। अतः यह मल की कठोरता या ठोसपन को कम करके कब्ज से निजात दिलाता है।
● मोटापा
आयुर्वेदिक मत- आयुर्वेद के मुताबिक़ मोटापा शरीर में आम के जमाव के कारण होता है जो एक प्रकार का विषैला अपशिष्ट होता है और कमजोर पाचन प्रणाली के कारण उत्पन्न होता है। एलोवेरा अपनी दीपन प्रकृति के कारण मोटापे से राहत देता है, क्योंकि इसका यह गुण आम से छुटकारा दिलाने में मदद करता है। इसका मतलब यह है कि यह पाचक अग्नि में वृद्धि करके उपापचय को बेहतर बनाने का काम करता है।
टिप्स:
• यह सुझाव दिया जाता है कि एलोवेरा का बहुत सीमित मात्रा में सेवन करना चाहिए।
• एक गिलास पानी लें तथा इसमें एलोवेरा का जेल मिला लें।
• अब इस पानी को एक बरतन में डालकर गरम करें मगर साथ में ढंग से चलाते भी रहें।
• इसमें नींबू का रस डालकर अच्छी तरह से मिला लें और सुबह के वक़्त पिएं।
• मनचाहा परिणाम प्राप्त करने के लिए यह उपाय दो से तीन माह तक लगातार करते रहना चाहिए।
डायबिटिज मेलिटस (टाइप 1 तथा टाइप 2)
आयुर्वेदिक मत- आयुर्वेद में डायबिटिज को मधुमेह कहते हैं तथा यह वात की गड़बड़ी एवं कमजोर पाचन तंत्र का परिणाम होता है। कमजोर पाचन के कारण शरीर में आम जो कि एक विषैला अपशिष्ट होता है जमा हो जाता है और इसी कारण इसी वजह से इंसुलिन की कार्य प्रणाली बिगड़ जाती है। एलोवेरा शरीर में वात की गड़बड़ी को दूर करता है एवं आम या विषैले अपशिष्ट को शरीर से हटाता है और इससे शरीर में रक्त शर्करा के स्तर को कमी आती है।
टिप्स:
• दो से तीन चम्मच एलोवेरा का जूस लें।
• इस जूस को एक गिलास पानी में डालें।
• इसे सुबह खाली पेट पी लें।
• इच्छित परिणाम पाने के लिए यह उपाय दो से तीन माह तक लगातार करते रहें।
• यदि इसके सेवन के साथ-साथ दवाइयां भी ले रहे हैं तो चिकित्सक से मिलकर उनका परामर्श अवश्य लें।
● उच्च कोलेस्ट्रॉल
आयुर्वेदिक मत- आयुर्वेद के अनुसार उच्च कोलेस्ट्रॉल पाचक अग्नि के असंतुलन का नतीजा होता है। जब ऊतकों में पाचन संबंधी कमजोरी आ जाती है तो आम नामक अपशिष्ट की उत्पत्ति की अति हो जाती है। यह टोक्सिन या जीव विष पाचन की कमजोरी का ही परिणाम होता है। इस कारण शरीर में हानिकारक कोलेस्ट्रॉल का स्तर बढ़ जाता है और ह्रदय की धमनियों में रुकावट पैदा हो जाती है। एलोवेरा शरीर को आम या टोक्सिन से छुटकारा दिलाने में खास मदद करता है।
टिप्स:
• दो से तीन चम्मच एलोवेरा का जूस लें।
• इसे एक गिलास पानी में मिला लें।
• इसे सुबह खाली पेट पिएं।
• बेहतर परिणाम पाने के लिए इसका सेवन दो मास तक जारी रखें।
इनफ्लेमेट्री बावेल रोग
आयुर्वेदिक मत- जब इस रोग के बारे में आयुर्वेदिक तौर पर विचार करते हैं तो पाते हैं कि इस रोग का कारण आम ही बनता है तथा इसी कारण एलोवेरा आईबीडी के उपचार में खास मदद करता है। इसका सेवन अपच के कारण उत्पन्न अपशिष्ट से निजात दिलाता है। ऐसा एलोवेरा के दीपन या क्षुधावर्धक और पाचन गुणों के कारण संभव हो पाता है। फिर भी इसके सेवन से पूर्व चिकित्सक से परामर्श लेना अनिवार्य समझना चाहिए।
टिप्स:
• दो से तीन चम्मच एलोवेरा का जूस ले।
• इसे एक गिलास पानी में मिला लें।
• इसे सुबह खाली पेट पी लें।
• यह उपाय दो महीने लगातार करेने से बेहतर परिणाम मिलेंगे।
● तनाव
आयुर्वेदिक मत- तनाव मुख्यतः बहुत खराब मूड की स्थिति होती है तथा इसको ठीक करने के लिए कुछ ऐसा करने की जरूरत होती है जिससे व्यक्ति का मूड खुशनुमा हो जाए। तनाव व्यक्ति के दैनिक क्रियाकलाप तथा उसके विचारों, व्यवहार, सामान्य सूझ-बूझ आदि को प्रभावित करता है। आयुर्वेद के अनुसार शरीर में वात की गड़बड़ी के कारण ही व्यक्ति में तनाव की स्थिति पैदा होती है। एलोवेरा में वात को संतुलित करने वाले गुण मौजूद पाए जाते हैं जो वात की गड़बड़ी को ठीक करके तनाव को कम करने एवं व्यक्ति के मूड को खुशनुमा बनाने में मदद करते हैं।
● एच आई वी संक्रमण
एलोवेरा में अनेक उपचारात्मक एवं स्वास्थ्य को लाभ पहुंचाने वाले गुण मौजूद पाए जाते हैं तथा यह हमारी प्रतिरोधक क्षमता की वृद्धि में भी योग देता है। इसका मतलब यह हुआ कि यह शरीर में एचआईवी संक्रमण को नियंत्रित करने में भी मदद कर सकता है। मनुष्य पर तो ऐसे खास अध्ययन नहीं किए गए हैं मगर जानवरों पर किए गए अध्ययन दर्शाते हैं कि एलोवेरा एचआईवी संक्रमित व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता को काफ़ी बढ़ा सकता है। इसकी वजह यह है कि यह श्वेत रक्त कणिकाओं व एंटीबॉडीज की वृद्धि में योग देता है। वैज्ञानिक शोध दर्शाते हैं कि एलोवेरा में उपस्थित एंटीवायरल पोलिसेक्चाइडेस कोशिकाओं की कार्य प्रणाली में सुधार लाते हैं। इसी कारण एलोवेरा से एड्स के उपचार को लेकर शोध प्रक्रियाओ को बल मिलता है। एलोवेरा के रासायनिक संघटन को लेकर हुए अध्ययन दर्शाते हैं कि इसके जेल में मौजूद गुण शरीर में बीमारियों से लड़ने वाने वाले एंटीबाडीज की रचना करते हैं और फैगोसाइट्स नामक श्वेत रक्त कणिकाओं को उत्तेजित करते हैं। अध्ययन यह भी दर्शाते हैं कि इसमें मौजूद एंटीवायरल पोलिसेक्चाइडेस कोशिकाओं की कार्य प्रणाली को बेहतर बनाते हैं। इन समस्त अध्ययनों के आधार पर कहा जा सकता है कि एलोवेरा एड्स के उपचार में योग दे सकता है। इसमें मौजूद एक्मेनन नामक फाइटोन्यूट्रिंट की सांद्रता प्रतिरोधक क्षमता को को बढ़ाती है। एलोवेरा अपने ट्यूमर नेक्रोसिस घटक इंटरफेरॉन तथा इंटरल्युकिन की वृद्धि के लिए जाना जाता है। विकिपीडिया के अनुसार यह यौगिक प्रतिरक्षा प्रणाली की मजबूती, विषाणु रोधिता ,, एंटिनियोप्लास्टिक तथा गैस्ट्रोइंटेस्टिनल गुणों के लिए जाना जाता है।
● कैंसर
वैज्ञानिक अध्ययन के मुताबिक एलोवेरा का कैंसर के अनुपूरक उपचार के लिए प्रयोग होता है। वैज्ञानिक अध्ययन दर्शाते हैं कि एलोवेरा में प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ाने वाले गुण पाए जाते हैं। यह शरीर में श्वेत रक्त कणिकाओं की वृद्धि करता है तथा कीमोथेरेपी क् दुष्प्रभावों को कम करता है। एलोवेरा में मौजूद जटिल कार्बोहाइड्रेट प्रतिरक्षा कोशिकाओं की शक्ति में वृद्धि कर सकते हैं एवं कैंसर का कारण बनने वाली असामान्य कोशिकाओं को हटाने में मदद कर सकते हैं। जटिल कार्बोहाइड्रेट कोशिकाओं के द्वारों को खोलने तथा उनमे पोषक तत्वों को भरने व विषैले पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करते हैं। ये शर्करा की एक लंबी श्रंखला की रचना करते हैं जो खुद को समग्र कोशिकाओं में स्थापित कर लेती है। यह शर्करा की श्रंखला कोशिकाओं को इस योग्य बना देती है कि वे पोषक तत्वों को अवशोषित कर विषैले तत्वों को मुक्त कर सकें। इससे कोशिकाएं उपापचय के रूप में बेहतर बनती हैं तथा ऊर्जा की उत्पत्ति में सुधार आता है। प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है तथा शरीर में असामान्य या कैंसर का कारण बनने वाली कोशिकाओं से लड़ने की शक्ति आती है।
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वैज्ञानिक दृष्टिकोण के अनुरूप एलोवेरा के लंबे उपभोग के फलस्वरूप इसके विरेचक प्रभाव डायरिया तथा क्रैंप्स या ऐंठन के रूप में सामने आ सकते हैं। यह दीर्घ या लंबे रक्त स्राव का कारण भी बन सकता है। यह व्यक्ति द्वारा सेवन की गयी दवाइयों में दखल भी दे सकता है। अतः एलोवेरा के सेवन से पूर्व चिकित्सक से परामर्श करना अनिवार्य है। इसके अलावा एलोवेरा जेल का अरंडी के तेल के साथ सेवन करना भी वर्जित है क्योंकि इससे डायरिया तथा डिहाइड्रेशन की समस्या उत्पन्न हो सकती है। एलोवेरा के दो प्रमुख भाग होते हैं- इसकी पत्तियों के मध्य भाग में उपस्थित स्वच्छ जेल एलोय जेल तथा क्षीर कहलाता है। इसकी पत्तियों की छाल के निचले भाग में एक पीले रंग का पदार्थ उपस्थित पाया जाता है। जब आप एलोवेरा का जूस बनाते हैं तो उसकी पत्तियों से जेल को निकालना पड़ता है। यह करते समय आपको इस बात का ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि इसके क्षीर से बचा जाए। अगर आप एलोय को बाजार से खरीद रहें तो इस बात पर ध्यान दें कि यहखाद्य प्रकृति का होना चाहिए। यदि आप गलत वस्तु का सेवन करेंगे तो स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का शिकार बन सकते हैं। यह डायरिया का कारण बन सकता है और साथ ही इलेक्ट्रोलाइट की हानि का कारण भी बन सकता है। एलोवेरा के जूस को पानी के स्थान पर नहीं पीना चाहिए और अपने एलोवेरा के जूस के गिलास के साथ हमेशा पानी का जग साथ रख लेना चाहिए ताकि डिहाइड्रेशन से बचाव हो सके। इसके अलावा एलोवेरा के जूस के उपभोग के दौरान विशेष सावधानी रखनी चाहिए, अन्यथा यह शरीर के लिए घातक परिणाम देने वाला साबित हो सकता है। आयुर्वेद के अनुसार पेट की समस्याएं, जैसे कि दस्त आदि हो तो व्यक्ति को एलोवेरा केसेवन से परहेज करना चाहिए क्योंकि इस पौधे में उपस्थित रेचन या विरेचक गुण होते हैं जिनके कारण स्थिति खराब हो सकती है।
ऐसे लोग जिन्हें लहसुन, प्याज तथा लिलियकैयी परिवार के पौधों से एलर्जी होती हो उन्हें एलोवेरा का सेवन कदापि नहीं करना चाहिए। इस मामले में चिकित्सक के परामर्श के बाद ही कोई निर्णय लेना उचित रहता है। गर्भवती तथा स्तनपान कराने वाली महिलाओं को एलोवेरा से दूर ही रहना चाहिए, क्योंकि इसके कारण गर्भपात का खतरा उत्पन्न हो सकता है। अतः गर्भावस्था व स्तनपान के दौरान इसके जेल या क्षीर का सेवन कभी नहीं करना चाहिए। एलोवेरा का सावधानीपूर्वक बच्चों की त्वचा पर इस्तेमाल करना भले ही फायदा दे मगर इसका सेवन बच्चों के लिए घातक सिद्ध हो सकता है। बारह साल से कम आयु वर्ग के बच्चों को इसके जेल से दूर रहना चाहिए, क्योंकि यह उदर संबंधी समस्याओं, जैसे कि दर्द, ऐंठन या मरोड़ और दस्त आदि का कारण बन सकता है। बवासीर से पीड़ित लोगों को एलोवेरा का उपभोग नहीं करना चाहिए, क्योंकि इससे हालत और भी अधिक बिगड़ सकती है। इस बात का भी विशेष ध्यान रखें कि एलोय की पत्तियों से बने उत्पादों में भी कुछ क्षीर मौजूद रहता है तथा उससे भी स्थिति गंभीर हो सकती है। किडनी की समस्या से पीड़ित लोगों को ध्यान रखना चाहिए कि एलोवेरा की अधिक मात्रा का सेवन किडनी के फेल होने का कारण बन सकता है। यह पोटेशियम के लेवल की कमी एवं इलेक्ट्रोलाइट के असंतुलन की वजह भी बन सकता है। अतः यदि इसका सेवन कर रहे हैं तो पोटेशियम के स्तर की जांच अवश्य कराते रहें। शल्यक्रिया के मामले मे यह रक्त शर्करा के लेवल की गड़बड़ी का कारण बन सकता है। अतः शल्यक्रिया के दो सप्ताह पूर्व ही इसका उपभोग बंद कर देना चहिए।
एलोवेरा से संबंधित कुछ प्रमुख दुष्प्रभाव इस प्रकार हैं
• पेट दर्द
• ऐंठन या मरोड़
• डायरिया
• मूत्र में रक्त आना
• पोटेशियम के लेवल में गिरावट
• मांसपेशियों की कमजोरी आदि।
एलोवेरा की निर्देशित मात्रा
• एलोवेरा कैपसूल: दिन में दो बार एक-एक कैपसूल या फिर चिकित्सक के परामर्शानुसार लें
• एलोवेरा जूस: दो से तीन बूंदें पानी में मिलाकर लें। इसके सेवन से पहले चिकित्सक का परामर्श लेना अनिवार्य है।
• एलोवेरा की पत्तियों का क्षीर: दिनभर में मात्र एक या दो चुटकी भर की मात्रा में ले सकते हैं।
• एलोवेरा की लुग्दी या पल्प: दिन में एक-चौथाई या आधा चम्मच लें या फिर चिकित्सक के परामर्शानुसार सेवन करें।
एलोवेरा का विभिन्न प्रकार से कैसे उपयोग करें
• दो से तीन चम्मच एलोवेरा का जूस लें।
• एक गिलास पानी लें।
• जूस को इसमें मिलाकर तुरंत पी लें।
• बेहतर परिणाम को ध्यान में रखते हुए इसका सेवन सुबह खाली पेट करें।
एलोवेरा के कैपसूल
• खाना खाने के बाद एक कैपसूल का सेवन करें या फिर चिकित्सक के परामर्शानुसार लें।
• बेहतर परिणाम के लिए दिन में दो बार सेवन करें।
एलोवेरा का पल्प या लुग्दी
• एलोवेरा की एक पत्ती लेकर उसके अंदर से पल्प को निकाल लें।
• इसका एक-चौथाई या आधा चम्मच पल्प लेकर किसी मनपसंद पेय या जूस में मिला लें।
• इसमें खूब अच्छी तरह से मिला लें और फिर तुरंत पी लें।
• इसका सेवन मुख्यतः सुबह नाश्ते के दौरान करना उचित रहता है।
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● मुहांसे
आयुर्वेदिक मत- आयुर्वेद के मुताबिक़ विविध त्वचा रोगों, जैसे कि मुहांसों आदि की समस्या की उत्पत्ति का कारण शरीर में वात-पित्त की गड़बड़ी बनती है। कफ की गड़बड़ी त्वचा में सीबम या त्वग्वसा की वृद्धि करती है जो त्वचा रंध्रों को अवरुद्ध करके सफेद व काले मस्सों की समस्या पैदा करती है। पित्त की गड़बड़ी फुंसियों तथा दाग-धब्बों का कारण बनती है। एलोवेरा अपनी शीत, रोपन या उपचारात्मक प्रकृति के बल पर इन समस्याओं से छुटकारा दिलाता है। अतः एलोवेरा मुहांसों के उपचार में मदद करता है।
टिप्स:
• एक चम्मच एलोवेरा जेल लें।
• इसमें आधा चम्मच हल्दी मिलाकर पेस्ट तैयार कर लें।
• इसे चेहरे पर लगा लें और चालीस मिनट तक लगा रहने दें।
• इसके सूख जाने के बाद सादे पानी से चेहरा धो लें और सुखा लें।
• शुष्क त्वचा के उपचार के लिए एलोवेरा के जेल में शहद मिलाकर कर उपयोग करें।
• इच्छित परिणाम पाने के लिए यह उपाय सप्ताह में दो बार दोहराएं।
● बालों की रुसी
आयुर्वेदिक मत- रूसी सिर की खाल पर मौजूद शुष्क त्वचा की पपड़ी होते हैं और इनका कारण वात-पित्त की गड़बड़ी बनती है। एलोवेरा वात-पित्त की गड़बड़ी को ठीक करके रूसी को नियंत्रित करता है।
टिप्स:
• 4-5 चम्मच एलोवेरा का जूस लें।
• इसमें एक चम्मच नींबू का रस और दो चम्मच ओलिव ऑयल मिला लें।
• इसकी सिर की खाल पर अच्छी तरह से मालिश करें तथा 30-35 मिनट तक इसी तरह रहने दें।
• अब सौम्य प्रकृति के शैंपू से सिर धो लें।
• इच्छित परिणाम पाने के लिए यह उपाय सप्ताह में तीन बार दोहराएं।
● जले हुए का उपचार
आयुर्वेदिक मत- एलोवेरा अपनी शीतल तथा रोपन या उपचारात्मक प्रकृति के कारण दर्द से राहत देता है और साथ ही घाव को भरने में मदद करता है।
टिप्स:
• सबसे पहले हाथों को अच्छी तरह से धोकर साफ कर लें।
• अब अपने हाथ पर थोडा-सा एलोवेरा का जेल रखें।
• अब इस जेल को जले हुए भाग पर लगाएं।
● त्वचा की पुनरुद्धार
आयुर्वेदिक मत- अपने उपचारात्मक गुणों के कारण एलोवेरा छोटे-मोटे घावों के भरने तथा त्वचा के पुनरुद्धार में मदद कर सकता है। यह अपनी गुरु, स्निग्ध तथा शीतल प्रकृति के कारण ऐसा संभव कर पाता है।
टिप्स:
• प्रभावित त्वचा पर प्रत्यक्ष रूप से एलोवेरा के जेल का इस्तेमाल करें।
• आराम होने तक इसका लगातार उपयोग करते रहें।
प्र. क्या एलोवेरा के जूस को फ्रिज में रखना जरूरी है?
उ. हां, एलोवेरा के जूस को फ्रिज में रखना जरूरी है, क्योंकि इस तरह यह ताजा बना रहता है तथा लंबे समय तक उपयोग योग्य रहता है।
प्र. क्या एलोवेरा का जूस पीड़ा या टीस की अनुभूति का कारण बनता है?
उ. यह कुछ मामलों में ऐसा अनुभव दर्शाता है। ऐसा मुख्यतः तब होता है जब इसके जेल को पहली बार त्वचा या घाव पर लगाया जाता है। यह दस से पंद्रह मिनट तक रहता है और फिर स्वतः ही मिट जाता है।
प्र. एलोवेरा के जूस या जेल में से कौन-सा बेहतर रहता है?
उ. इसके जेल या जूस दोनों में सेहत को लाभ पहुंचाने वाले अनेक गुण मौजूद पाए जाते हैं। सामान्यतः इनका चुनाव इनके उपयोग के उद्देश्य के आधार पर किया जाता है। उदाहरणतः जठरीय रोगों के उपचार हेतु इसका जूस बेहतर रहता है, क्योंकि उसमें रेचन या विरेचक गुण होते हैं, इसके विपरीत मुहांसों के उपचार के लिए इसका जेल प्रयोग करते हैं, क्योंकि इसमें रोपन संबंधित गुण होते हैं।
प्र. क्या एलोवेरा के जूस का सेवन लाभप्रद होता है?
उ. ऐसा माना जाता है कि एलोवेरा के जूस के उपचारात्मक गुणों के कारण इसको पीना फायदेमंद होता है मगर यहां यह ध्यान अवश्य रखें कि इसे पीने से पूर्व चिकित्सक का परामर्श लेना अनिवार्य है। आयुर्वेद के अनुसार एलोवेरा के जूस को पाचन तथा जठरीय समस्याओं से निजात पाने के लिए पीना चाहिए। यह लिवर गुणवत्ता तथा उसकी कार्य प्रणाली में सुधार लाता है। यह ऐसा अपने दीपन या क्षुधावर्धक गुणों के कारण संभव कर पाता है। यह अपने विरेचक गुणों के बल पर कब्ज की समस्या का निदान भी करता है।
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