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ClinicsBy Dr. Bhawana Bhatt | Disease and Treatment | Posted on : 29-Jan-2021
आए दिन बहुत से लोग किसी न किसी प्रकार के त्वक विकार से जूझते रहते है , जिसमे से कुछ त्वचा विकार किसी संक्रमण के कारण होते है तो कुछ खान पान और बिगड़ी आहार शैली के कारण होते है। इन्ही त्वक विकारो में से एक त्वक विकार है शीतपित्त/अर्टीकेरिआ। वैसे तो अर्टीकेरिआ किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकता है लेकिन मुख्यतया यह मिडिल ऐज के लोगो में देखने को मिलता है। इसमें मुख्यतया मुख तथा हाथो और पैरो की त्वचा में रक्त वर्ण के ततैये से काटने के समान चकक़ते हो जाते है। इन चक्कतो की विशेषता यह होती है कि यह खुद ही गायब हो जाते है और निदान सेवन करने पर फिर से खुद ही प्रकट हो जाते है। ये चक्कते ज़्यादातर खुजली युक्त होते है तथा इनके आकार और माप में भिन्नता देखने को मिलती है।
एक्यूट अर्टीकेरिआ- एलर्जेन के संपर्क में आने पर कुछ मिनट के बाद ही त्वचा में चक्कते उत्पन्न हो जाते है जो कुछ घंटो से लेकर कुछ हफ्तों ( ६ हफ्तों से कम समय में ) तक बने रहते है।
क्रोनिक अर्टीकेरिआ- जब उत्पन्न चक्कतें ६ हफ्तों से ज्यादा समय तक बने रहे तो इसे क्रोनिक कहते है।
आयुर्वेद में इसे शीतपित्त के नाम से जाना जाता है और इसका मुख्य कारण शीतल हवा के स्पर्श से अथवा शीतल हवा के संपर्क में आने से कफ तथा वात दोष का प्रकुपित हो जाना है। इस बीमारी में मुख्य रूप से त्वचा के ऊपर ततैया के काटने जैसा शोथ उत्पन्न हो जाता है।
अमूमन शीतपित्त का प्रभाव कुछ मिनटों तक रहकर खुद ही समाप्त हो जाता है लेकिन कभी कभी यह खुद से समाप्त न हो तथा शीतपित्त मुँह और गले में होने से व्यक्ति को सांस लेने में कठिनाई हो रही हो तो शीघ्र ही चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए।
प्रश्न- एक बार अर्टीकेरिआ सही हो जाने पर त्वचा पे कोई निशान रहते है ?
उत्तर- नहीं , अर्टीकेरिआ के सही ही जाने पर त्वचा में किसी प्रकार का कोई निशान नहीं रहता है।
प्रश्न- अर्टीकेरिआ का मुख्य लक्षण क्या है?
उत्तर- अर्टीकेरिआ का मुख्य लक्षण त्वचा पे ततैये से काटने के समान लालिमा छा जाना और तीव्र कण्डु ( खुजली ) होना है।
प्रश्न- अर्टीकेरिआ के लिए आयुर्वेद में क्या उपचार उपलब्ध है ?
उत्तर- आयुर्वेद में को अर्टीकेरिआ शीतपित्त के नाम से जाना जाता है और इस बीमारी में पथ्य पालन के साथ साथ अभ्यंग , स्वेदन , वमन , विरेचन तथा रक्तमोक्षण कराने का निर्देश है।