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इम्युनिटी कम होने के कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक उपाय - Immunity Kam Hone Ke Karan, Lakshan Aur Ayurvedic Upay

By Dr Tabassum Hasan | Disease and Treatment | Posted on :   29-Jan-2021

2019 में जब कोरोना वायरस ने हर जगह अपने पैर पसारे तो सारी दुनिया में एक भयावह स्थिति बन गयी। किसी दवाई या वैक्सीन का उपलब्ध न होना भी लोगों को डरा रहा था। ऐसे में डाक्टर्स का कहना था कि अपनी इम्युनिटी को बढाना ही एकमात्र उपाय है। उस समय भारत की हज़ारों वर्ष पुरानी चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद ने लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। भारत में कम मृत्यु दर की एक बडी वजह यह भी रही कि लोगों ने समय रहते आयुर्वेद के सिद्धांतों को अपनाया। इसी कारण और देशो की तुलना में यहाँ इम्युनिटी बढ गयी और रिकवरी रेट 95% से भी अधिक रहा। तो आइये समझते हैं आखिर क्या है इम्युनिटी तथा कौन से कारक इसे स्वाभाविक रूप से प्रभावित करते हैं?

इम्युनिटी क्या है?- What is Immunity

आयुर्वेद का प्रयोजन स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना तथा बीमार व्यक्ति की व्याधि का नाश करना है। यहाँ व्यक्ति को स्वस्थ रखने की बात पहले कही गयी है। इसे देख कर अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि आयुर्वेद में इम्युनिटी या प्रतिरक्षा सिद्धांत का कितना महत्व है।
 
आयुर्वेद में प्रतिरक्षा के सिद्धांत को कई विषयों के अंतर्गत बताया गया है जैसे बल, ओज और व्याधि क्षमत्व।
 
बल का तात्पर्य है शरीर के विभिन्न तंत्रो की खुद ही पोषण करने और ठीक करने की क्षमता और रोग की रोकथाम में प्रभावी होने की क्षमता, जबकि व्याधि क्षमत्व रोग पैदा करने वाले रोगजनकों(पैथोजन) से लड़ने के लिए प्रतिरक्षा प्रणाली की क्षमता है। बल शरीर के कार्यों, ऊतकों, पाचन और उत्सर्जन तंत्र के समग्र संतुलन से आता है, जबकि रोगजनक जीवों के संपर्क में आने के बाद विशुद्ध रूप से हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली के शरीर का बचाव कार्य करती है।
 
हमारे शरीर के पोषण के लिये होने वाली चयापचय प्रक्रियाओं के परिणामस्वरूप अंत में ओज का निर्माण होता है। ओज को हमारे द्वारा ग्रहण किए जाने वाले भोजन का सार माना जाता है, और व्यक्ति में अच्छे ओज का स्तर उचित पोषण का परिचायक है। ओज को शरीर की सात धातुओ( रस, रक्त, मास, मेद, अस्थि, मज्जा और शुक्र) का सार माना गया है। हमारा प्रतिरक्षा तंत्र मुख्यतः पाचन तंत्र से संबंधित है। ओज का सिद्धांत पाचन और प्रतिरक्षा के बीच सीधा संबंध स्थापित करता है। ओज का कार्य केवल रोग प्रतिरोधक के रूप में ही नहीं है, बल्कि यह प्रतिकूल शारीरिक, मानसिक या पर्यावरणीय परिवर्तन में भी सहायक है तथा व्यक्ति को बीमार नहीं होने देता।
 
व्याधिक्षमत्व शब्द दो शब्दों से बना है: व्याधि (रोग) और क्षमत्व (दूर करना)।
 
आयुर्वेद के अनुसार, व्याधि तब उत्पन्न होती है जब दोष(वात, पित्त और कफ), धातू(ऊतक प्रणाली) और मल (शरीर के उत्सर्जन उत्पाद) के बीच संतुलन नहीं रहता। क्षमत्व से तात्पर्य है, व्याधि को शांत करना या उसका विरोध करना। अतः व्याधिक्षमत्व का अर्थ है रोग को उत्पन्न होने से रोकना और जीवाणुओ का विरोध करना। आयुर्वेद में इसकी व्याख्या निम्न प्रकार भी की गई:
 
  1. व्याधि-बलविरोधित्वम्: यह रोगों के बल(गंभीरता) को नियंत्रित करने या उनका सामना करने की क्षमता है यानी रोग की प्रगति को रोकता है। 
  2. व्याधि-उत्पादक प्रतिबंधकत्त्व: शरीर की प्रतिरोधक क्षमता जो रोग की उत्पत्ति और पुन: उत्पत्ति को रोकती है। ये दोनों ही मिल कर शरीर में प्रतिरक्षा तंत्र कहलाते हैं।
 
इम्युनिटी के प्रकार- Types of Immunity
 
आयुर्वेद में तीन प्रकार की इम्युनिटी बताई गई हैं:
सहज: जन्मजात या प्राकृतिक
सहज बल माता-पिता द्वारा बच्चों में आता है। जैसा कि आज कल देखा जाता है कि कुछ बच्चों में विभिन्न प्रकार की एलर्जी देखी जाती हैं। यह गुण उनमें पूर्वजों द्वारा आते हैं। आयुर्वेद में बताया गया है कि यह गुण सूत्र के स्तर से ही शुरु हो जाता है। यदि माता-पिता का स्वास्थ्य अच्छा होगा तो बच्चों का स्वास्थ्य भी अच्छा होगा, परंतु यदि उनमें ही बीमारियाँ होंगी तो वे बीमारियाँ पीढी दर पीढी भी चल सकती हैं यथा डायबिटीज़। 
कालज 
कालज बल दिन के समय, मौसम, आयु और जन्म स्थान जैसे कारकों पर आधारित है, ये प्रतिरक्षा को बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण कारक हैं। जैसे वयस्कों में अधिक आयु वालो की तुलना में अधिक बल होता है। इसी तरह हेमंत ऋतु में ग्रीष्म ऋतु की तुलना में अधिक बल होता है। ऐसे स्थान जहां पानी, तालाब आदि अधिक हो और सुखद वातावरण हो, ये कफकारक स्थान होते हैं जहां प्राकृतिक रूप से अधिक इम्युनिटी होती है। 
युक्तिकृत
यह वो इम्युनिटी है जो व्यक्ति जन्म के बाद अर्जित करता है। आयुर्वेद में इसके लिये विभिन्न सुझाव दिये गये हैं जैसे व्यायाम, सात्म्य एवम रसायनों (जडी-बूटियो) का प्रयोग।
 

शरीर में बल बढाने वाले कारक- Body Boosting Factors

  • ऐसे देश में जन्म लेना जहां प्राकृतिक रूप से लोग बलशाली हो।
  • शिशिर और हेमंत ऋतु में जन्म होना जब स्वाभाविक रूप से बल बढ जाता है।
  • सुखद और अनुकूल जलवायु का होना।
  • बीज के गुण अर्थात शुक्राणु और डिंब उत्कृष्ट हो और माँ के गर्भाशय की उचित शारीरिक स्थिति में उत्कृष्टता।
  • ग्रहण किया गया भोजन शरीर के रख-रखाव के लिए उत्तम हो।
  • शारीरिक संगठन उत्तम होना।
  • मन की उत्कृष्टता।
  • व्यक्ति की प्रकृति का उत्तम होना।
  • माता-पिता दोनों की कम उम्र यानी कि उनकी आयु अधिक नहीं होनी चाहिए। 
  • नियमित व्यायाम का अभ्यास करना।
  • हंसमुख स्वभाव और एक-दूसरे के प्रति प्रेम और सद्भाव की भावना।
  • ये सभी गुण जिन लोगों में पाये जाते हैं, वे स्वाभाविक रूप से कम बीमार होते हैं। उनकी व्याधि क्षमत्व कि शक्ति या इम्युनिटी अधिक होती है।
 
आपने अकसर ऐसे लोगों को देखा होगा जो ज़रा से मौसम के बदलाव से भी बीमार हो जाते हैं, जबकि कुछ लोग उसी वातावरण में रह कर भी बीमार नहीं होते। ऐसा इसलिये होता है क्योंकि कुछ लोगों की इम्युनिटी बाकी लोगों के मुकाबले में बेहतर होती है। कम इम्युनिटी के कारण भिन्न बीमारियाँ जैसे इंफेक्शन, आटो-इम्यून विकार एवं विभिन्न एलर्जी होने का खतरा बढ जाता है। आखिर ऐसे कौन से कारण हैं जो उन लोगों की इम्युनिटी बेहतर बनाते हैं और ऐसे कौन से कारण हैं जो इम्युनिटी कम करने के लिये ज़िम्मेदार हैं। तो आइये समझते हैं इम्युनिटी कम या ज़्यादा होने के कारण तथा इसके लक्षण।
 

इम्युनिटी कम होने के कारण- Causes of Lacking Immunity

आयुर्वेद में नौ कारकों का उल्लेख किया गया है जो शरीर की रोगों से लडने की क्षमता को कम करता है अर्थात् प्रतिरक्षा तंत्र को कमज़ोर करने के लिए जिम्मेदार है: 
  • अति-स्थूल (अत्यधिक मोटे व्यक्ति) 
  • अति-कृश (अत्यधिक दुबले-पतले व्यक्ति)
  • अनिविस्ट-मास (व्यक्ति का शरीर ठीक से मांसल न होना)
  • अनिविस्ट-अस्थि (दोषपूर्ण अस्थि ऊतक वाले व्यक्ति) 
  • अनिविस्ट-शोणित (दोषपूर्ण रक्त होना) 
  • दुर्बल (कमजोर व्यक्ति) 
  • असात्म्य-आहारोपाचिता (ऐसे व्यक्ति जिनका पोषण सही भोजन द्वारा न हुआ हो)
  • अल्प-आहारोपाचिता (अल्प मात्रा में आहार लेने वाले) 
  • अल्प-सत्त्व (कमज़ोर दिमाग वाले व्यक्ति)
 
ओज की हानि क्रोध, भूख, चिंता, दु: ख और अत्यधिक परिश्रम आदि से भी होती है। ये सभी मनुष्य की प्रतिरक्षा प्रणाली को कम करते हैं। इसके अलावा सबसे आम कारणों में कुपोषण, सफाई की कमी होना और कई तरह के वायरस संक्रमण (जैसे एचआईवी) शामिल हैं। अन्य कारणों में वृद्धावस्था, दवाएं (जैसे कोर्टिसोन, साइटोस्टैटिक ड्रग्स), रेडियोथेरेपी, सर्जरी के बाद तनाव और अस्थि मज्जा के घातक ट्यूमर भी शामिल हैं। 
 

अच्छी इम्युनिटी होने के कारण- Causes of Good Immunity

कुछ कारण ऐसे होते हैं जो व्यक्ति में प्राकृतिक रूप से अधिक इम्युनिटी के लिये ज़िम्मेदार होते हैं। ऐसे व्यक्ति असात्म्य आहार-विहार के बाद भी इतनी जल्दी बीमार नहीं होते। निम्न कारक अच्छी इम्युनिटी के लिये ज़िम्मेदार हैं:
  • माता के गर्भाशय का स्वस्थ होना: जैसे अच्छी खेती के लिये भूमि तथा मिट्टी का उपजाऊ होना आवश्यक है, उसी प्रकार माता के गर्भाशय का स्वास्थ्य अच्छा होना भी बच्चे के सही से बढने के लिये आवश्यक है। ऐसे बच्चों के बीमार पडने की सम्भावना कम होती है।
  • जन्म के पश्चात पोषण: बचपन से ही समय पर सही मात्रा में पोषण होना भी इम्युनिटी को बढाने में सहायक है। जैसे जन्म से लेकर छः माह तक सिर्फ माँ का दूध पिलाने की सलाह दी जाती है, यह बच्चे में बीमारियों से लडने की क्षमता का विकास करता है।
  • व्यक्ति की प्रकृति: आम तौर पर कफ प्रकृति के व्यक्तियों का प्रतिरक्षा तंत्र वातिक और पैत्तिक प्रकृति के लोगों की तुलना में मजबूत होता है। सामान्य अवस्था में कफ को बल और ओज माना जाता है जबकि असामान्य अवस्था में यह मल और व्याधि उत्पन्न करता है। सामान्यतः कफ का कार्य ओज के समान है। सामान्य अवस्था में कफ स्थिरता, भारीपन, पौरुष, प्रतिरक्षा, प्रतिरोध, साहस और धैर्य प्रदान करता है।
  • देहाग्नि या जठराग्नि: पेट की पाचन शक्ति त्वचा की चमक, शक्ति, स्वास्थ्य, उत्साह, कोमलता, रंग, ओज, शरीर के तेज और प्राण या जीवन शक्ति के लिये ज़िम्मेदार है। पाचन शक्ति सही होने से व्यक्ति को लंबी उम्र जीने में मदद मिलती है और कमज़ोर पाचन शक्ति बीमारियों को जन्म देती है। पाचन अग्नि मानव शरीर में पोषक तत्वों को पचाने, आत्मसात करने और अवशोषित करने में शरीर की मदद करता है तथा प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत करता है। 
  • मनः स्थिति: जीवन के प्रति सकारात्मक सोच का होना बहुत महत्वपूर्ण है। यह मजबूत मानसिक शक्ति को दर्शाता है तथा निश्चित रूप से अच्छी इम्युनिटी में सहायक है।
  • ध्यान लगाना: मन को आध्यात्मिक रूप से एक ही जगह लगाने से आत्म-जागरूकता और सकारात्मक सोच आती है, जिससे मानसिक शक्ति और इम्युनिटी में वृद्धि होती है।
 

प्रतिरक्षा तंत्र कमज़ोर होने के लक्षण- Symptoms of Weakened Immune System

हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली या इम्यून सिस्टम कीटाणुओं और जीवाणुओं के खिलाफ लडती है जो की बीमारियों का कारण बन सकते हैं। हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को स्वस्थ और संतुलित रखना व्याधि मुक्त जीवन शैली के लिए महत्वपूर्ण है। किंतु हमारा इम्यून सिस्टम कमज़ोर हो तो हमें कैसे पता लगेगा? निम्न कुछ लक्षण कमज़ोर इम्यून सिस्टम की ओर इशारा करते हैं:
  • बार-बार संक्रमण: यदि आपका प्रतिरक्षा तंत्र कमज़ोर है तो आप सामान्य प्रतिरक्षा प्रणाली वाले किसी व्यक्ति की तुलना में अधिक, लगातार, लंबे समय तक चलने वाले संक्रमण का शिकार हो सकते हैं।
  • थकान: थकान कमज़ोर प्रतिरक्षा तंत्र के प्रमुख लक्षणों में से एक है। अगर आप लगातार थकावट महसूस कर रहे हैं या आप आसानी से थक जाते हैं, तो हो सकता है कि आपका इम्यून सिस्टम ठीक नहीं है। ज़्यादा या कम कोर्टिसोल का स्तर आपके प्रतिरक्षा प्रणाली पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है, जिससे थकान होती है। कुछ ऑटोइम्यून बीमारियों से भी थकान होती है।
  • ठंड और गले में खराश: यदि आपको बार-बार सर्दी-ज़ुकाम होती है, आप ठंड के प्रति संवेदनशील हैं और बार-बार गले में खराश होती है, तो यह कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली की ओर इशारा करता है। 
  • एलर्जी: एलर्जी तब होती है जब आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली धूल, पराग जैसे हानिरहित पदार्थों के प्रति असामान्य रूप से प्रतिक्रिया करती है। यदि आप घरघराहट, खुजली, बहती नाक, आंखों से पानी आना या खुजली होने का अनुभव करते हैं, तो इसका मतलब है कि आपकी इम्युनिटी कमज़ोर हो रही है।
  • चोट लगने पर उनका घाव जल्दी न भरना: हमारी त्वचा वायरस और बैक्टीरिया के खिलाफ सबसे पहले रक्षा करती है। यदि प्रतिरक्षा प्रणाली कमज़ोर है, तो घाव पर बैक्टीरिया संक्रमण होना आसान हो जाता है और उस घाव को भरना मुश्किल हो जाता है।
  • कब्ज़, दस्त या पेट में दर्द होना: जब आंत के बैक्टीरिया संतुलित होते हैं, तो आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली भी संतुलित रहती है। परन्तु यदि आप बार-बार दस्त, पेट में संक्रमण और मतली जैसी पाचन समस्याओं से पीड़ित हैं, तो यह संकेत है कि आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर है। 
  • रक्ताल्पता या एनीमिया: एनीमिया एक ऐसी स्थिति है जहां लाल रक्त कोशिकाओं या हीमोग्लोबिन में कमी होती है। कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली कभी-कभी लाल रक्त कोशिकाओं को नष्ट कर देती है, जिससे एनीमिया हो सकता है। इससे थका हुआ महसूस करना, कमजोरी, सांस की तकलीफ या व्यायाम करने की क्षमता का कम होना जैसे लक्षण आ सकते हैं।
  • जोड़ों का दर्द: जोडो में दर्द इम्यून सिस्टम में असंतुलन का एक परिणाम हो सकता है। जब प्रतिरक्षा प्रणाली कमज़ोर होती है, तो गठिया, संधिशोथ जैसी स्थितियां होती हैं। यह रुमेटाइड आर्थरायटिस जैसे ऑटोइम्यून रोगों को ट्रिगर कर सकता है, जिसमें प्रतिरक्षा प्रणाली स्वस्थ ऊतक पर हमला करती है। इसमें जोडो की सूजन, लालिमा, गर्मी, कठोरता, दर्द और बुखार जैसे लक्षण आते हैं।
इन लक्षणों के अलावा ऐसे व्यक्ति में झल्लाहट, दुर्बलता, बिना कारण चिंता, असुविधा महसूस करना, त्वचा का रंग खराब होना और त्वचा का सूखापन आदि लक्षण पाये जाते हैं।
 

कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों के स्वास्थ्य के लिए क्या किया जा सकता है?- What can be done for the health of people with weakened immune systems?

 
यदि आप या आपके आस-पास किसी व्यक्ति की इम्युनिटी कमज़ोर है, तो ऐसे में स्वास्थ्य पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। इसके लिये निम्न कुछ उपाय अपनाये जा सकते हैं:
  • ऐसे व्यक्तियों को साफ-सफाई का बहुत ध्यान रखना चाहिये। प्रतिदिन नहाना, बार-बार हाथ धोना, घर की सतहों को साफ रखना चाहिये। 
  • जितना संभव हो सके बीमार लोगों के साथ संपर्क सीमित करें। वायरस या बैक्टीरिया एक-दूसरे के संपर्क में आने से फैल सकते हैं। इसलिये बेहतर है कि निश्चित दूरी बना कर रहेँ। 
  • तनाव से बचें। विभिन्न शोध में ये बात सामने आई है कि तनाव व्यक्ति के इम्यून सिस्टम पर बुरा प्रभाव डालता है। ऐसे व्यक्ति अधिक बीमार होते हैं। इसी लिये व्यक्ति को तनाव दूर करने के लिए अपने जीवन में योग, मेडिटेशन तथा मन-पसंद रुचियों को शामिल करना चाहिये। सोशल मीडिया से थोडी दूरी बना के रहे व परिवार तथा दोस्तों के साथ वक़्त बिताएँ।
  • घर का बना शुद्ध भोजन करें। अधिक से अधिक फलो तथा सब्जियों को अपने भोजन में शामिल करें। सभी चीजो को धो कर ही खाये। फ्रीज़ किये गये पदार्थ, डिब्बा बंद खाने न खाये। सही से न पका हुआ मीट, मछली खाने से परहेज़ करें।
  • नियमित रूप से व्यायाम करें। यह शरीर में एंडोर्फिन्स का स्राव कराता है जो तनाव का स्तर भी कम करता है। परंतु अपनी शक्ति से अधिक व्यायाम न करें। 
  • प्रत्येक दिन 7-8 घंटे की नींद आवश्यक रूप से लें। ठीक से नींद न लेना भी आपकी इम्युनिटी को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है।  
  अतः ये कुछ उपाय अपना कर आप भी बीमारियों से मुक्त एक स्वस्थ जीवन जी सकते हैं।
 

संदर्भ: 

  • अष्टांग हृदयम् १ / त्रिपाठी ब्रह्मानंद; चौखम्बा संस्कृत प्रतिष्ठान, दिल्ली, प्रथम संस्करण।
  • चरक संहिता, त्रिपाठी ब्रह्मानंद, चौखम्बा प्रकाशन, वाराणसी, प्रथम संस्करण।
  • सुश्रुत संहिता; घनेकर भास्कर; मेहरचंद लछमणदास प्रकाशन, नई दिल्ली। 
  • चरक संहिता (चक्रपाणिदत्त द्वारा आयुर्वेद दीपिका टीका) यादवजी त्रिकमजी, संपादक-वाराणसी: चौखम्भा सुरभारती प्रकाशन।
  • एम.के. शर्मा- व्याधिमक्षत्व की अवधारणा और बल के साथ इसका संबंध।
  • चरक संहिता (विद्योतिनी हिंदी टीका), भाग- I काशीनाथ शास्त्री, गोरखा नाथ चतुर्वेदी, संपादक-वाराणसी: चौखम्भा भारती अकादमी।
डिस्क्लेमर - लेख का उद्देश्य आपतक सिर्फ सूचना पहुँचाना है. किसी भी औषधि,थेरेपी,जड़ी-बूटी या फल का चिकित्सकीय उपयोग कृपया योग्य आयुर्वेद चिकित्सक के दिशा निर्देश में ही करें।