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ClinicsBy Dr Tabassum Hasan | Disease and Treatment | Posted on : 24-Jun-2021
आयुर्वेद भारत में प्राचीन काल से चली आ रही चिकित्सा प्रणाली है जिसका उद्देश्य स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य को ठीक रखना और बीमार व्यक्ति की चिकित्सा करना है। यह एक अच्छी जीवनशैली के माध्यम से व्यक्ति के सम्पूर्ण स्वास्थ्य को ठीक करने की शिक्षा देता है। आज कल के समय में बहुत से रोग हमारी बिगडी जीवन शैली का ही परिणाम हैं जिनमे से एक ह्रदय रोग भी हैं। इन्ही ह्र्दय रोगो में एरिथमिया भी शामिल है। तो आइये समझते हैं क्या है एरिथमिया और इस पर किस तरह काबू पाया जा सकता है।
• एरिथमिया क्या है? - What is Arrhythmia in Hindi?
• एरिथमिया के कारण - Causes of Arrhythmia in Hindi
• एरिथमिया के लक्षण - Symptoms of Arrhythmia in Hindi
• एरिथमिया का निदान - Diagnosis of Arrhythmia in Hindi
• एरिथमिया के सामान्य उपाय - Common Remedies for Arrhythmia in Hindi
• क्या खाएं और किससे बचें - What to Eat and What to Avoid in Hindi?
• अकसर पूछे जाने वाले प्रश्न - Frequently Asked Question in Hindi
एरिथमिया का सामान्य अर्थ है कि ह्रदय अपनी सामान्य गति से नहीं धडक रहा। दिल की धडकन का अनियमित हो जाना एरिथमिया कहलाता है। आयुर्वेद में इसे असामान्य ह्रदय गति बोला गया है। जब ह्रदय अपनी सामान्य गति या ताल से कार्य नहीं करता तो यह समस्या आती है। हमारी सामान्य ह्रदय गति 50 से 100 बीट प्रति मिनट है। एरिथमिया की समस्या में यह घट या बढ जाती है। आम तौर पर यह किसी ह्रदय रोग की तरफ इशारा करती है।
आयुर्वेद में एरिथमिया को दोषों के अनुसार विभाजित किया गया है। वात दोश असंतुलित होने पर अनियमित हो सकता है, अतः इसके बढने पर हमारी ह्रदय गति भी अनियमित हो जाती है। पित्त दोष की गति तेज़ होती है, इसीलिये इसके बढने पर ह्रदय गति अधिक हो जाती है। कफ दोष स्वभाव से ही मंद होने के कारण धीमी ह्रदय गति के लिये उत्तरदायी है।
हमारी खराब जीवन शैली और गलत खान-पान के कारण यह समस्या उत्पन्न होती है। आम उत्पन्न हो कर ह्रदय को दूशित करता है तथा दोषों के अंसतुलन से ह्रदय गति भी असन्तुलित हो जाती है। इसके अलावा निम्न कारणो से भी यह रोग हो सकता है:
• मोटापा
• सिगरेट पीना
• उच्च रक्तचाप
• फेफडो से सम्बंधित रोग
• कोरोनरी हार्ट डिसीज़
• डायबिटीज़
• इलेक्ट्रोलाइट का असंतुलन
• इंफेक्शन या बुखार
• शारीरिक या मानसिक तनाव
• अन्य रोह जैसे थायरॉयड या एनीमिया
• कुछ दवाएँ जैसे एम्फीटामाइंस और बीटा ब्लॉकर्स आदि का सेवन
एरिथमिया का मुख्य लक्षण है ह्रदय की ताल गति का असामान्य होना। यह तेज़ या धीमी हो सकती है. यदि यह तेज़ होती है तो इसे टैकीकार्डिया और धीमी हो तो ब्रैडीकार्डिया कहलाता है। व्यान वायु(वात दोश का एक प्रकार) ह्रदय की सभी गतिविधियो का नियंत्रण करती है, व्यान वायु के सामान्य कार्य में बाधा आने से ह्रदय गति असामान्य हो जाती है। यह पित्त के साथ मिल कर टैकीकार्डिया और कफ के साथ मिल कर ब्रैडीकार्डिया को उत्पन्न करती है। इसके अलावा इसमे निम्न लक्षण मिलते हैं:
• सांस फूलना
• सीने में दर्द
• असामान्य नाडी चाप
• घबराहट होना
• त्वचा का पीला पड जाना
• अत्यधिक पसीना आना
• चक्कर आना
आमतौर पर व्यायाम करने या दौड-भाग करने के बाद ह्रदय गति असामान्य हो जाती है जो कि कुछ ही देर में अपनी सामान्य लय में आ जाती है। लेकिन यदि आपकी ह्रदय गति कुछ सेकेंडो से ज़्यादा समय तक असामान्य रहती है तो आपको डॉक्टर को दिखाने की आवश्यकता है। इसका निदान लक्षण देख कर, इतिहास इतिवृत्त तथा कुछ जांचो जैसे ईसीजी, ईकोकार्डियोग्राम, स्ट्रेस टेस्ट आदि के आधार पर किया जाता है।
आयुर्वेद में ह्रदय को एक महत्वपूर्ण अंग माना गया है। यह त्रिमर्मो में से एक मर्म है, अतः ह्रदय को आघात लगने पर यह बहुत सी जटिलताएँ पैदा कर सकता है बल्कि व्यक्ति की मृत्यु भी हो सकती है। इसलिये ह्रदय के स्वास्थ्य का ध्यान रखना बेहद ज़रूरी है। एरिथमिया से बचाव के लिये निम्न उपाय अपनाये जा सकते हैं:
• वात दोष को संतुलित करने के लिये तैल में बने हल्के भारी भोजन को वरीयता देँ। लहसुन, मछली, तैल आदि को नियमित रूप से डाइट में ले। मेडिटेशन और बैठ कर किये जाने वाले योग आसन करेँ। अश्वगंधा को दूध के साथ ले सकते हैं। यह हृदय को बल देता है। वात दोष को ठीक करने के लिये अर्जुन, अश्वगंधा, गुग्गुल, लहसुन, मुलेठी आदि का प्रयोग किया जा सकता है।
• पित्त दोष को संतुलित करने के लिये अधिक गर्म खाने, तेज़ मिर्च-मसाले, मांस, अत्यधिक नमक आदि का सेवन न करेँ। खाने में घी का सेवन करेँ। अधिक धूप, अधिक व्यायाम, बहुत अधिक शारीरिक कार्य करने से भी परहेज़ करेँ। केसर, अर्जुन, शतावरी, एलोवेरा आदि जडी-बूटियाँ लाभकारी हैं। मुलेठी, ब्राह्मी या अर्जुन की बनी दवाओ का सेवन कर सकते हैं।
• कफ दोष को संतुलित करने के लिये तैलीय, भारी भोजन, अधिक नमक, अत्यधिक मीठा त्याग देँ। हल्का सुपाच्य भोजन लेँ। अर्जुन, इलायची, दालचीनी, गुग्गुल, त्रिकटु का सेवन लाभदायक है।
• अर्जुन: आयुर्वेद में अर्जुन को कार्डियो-टॉनिक बताया गया है। एक चम्मच अर्जुन को एक गिलास दूश में पका कर आधा रह जाने पर छान कर सेवन कर सकते हैं।
• इसके अलावा तनाव के लिये योगा आसन तथा मेडिटेशन का बहुत महत्व है। हल्का-फुल्का व्यायाम भी नियमित रूप से करेँ।
आपने भी यह कहावत सुनी होगी कि जैसा खाये अन्न, वैसा बने मन। आपको जान कर हैरानी होगी कि आयुर्वेद में मन का स्थान हृदय बताया गया है। वैसे भी हम जो भी खाते हैं उसका सीधा असर हमारे स्वास्थ्य पर पडता है। तो आज से ही अपने दिल को स्वस्थ रखने के लिये अपने भोजन में निम्न कुछ बातो का ध्यान रखेँ:
• पचने में हल्का, घर के बने ताज़ा भोजन का सेवन करेँ।
• भोजन में हाई-फाइबर चीजे लेँ जैसे जौ, साबुत अनाज तथा दलिया आदि।
• खट्टे फल ह्रदय के लिये अच्छे होते हैं जैसे बेर, नीम्बू, अनार, मौसमी आदि। इन्हे नियमित रूप से अपनी डाइट में शामिल करेँ।
• खाने में फल-सब्ज़ियो की मात्रा अधिक रखेँ क्योंकि यह पचने में आसान होती हैं।
• अधिक तला-भुना और मसालेदार भोजन करने से परहेज़ करेँ।
• सिगरेट, शराब, चाय-कॉफी आदि से दूर रहेँ।
• अधिक नमक न खायेँ।
• अधिक मीठा, प्रोसेस्ड फूड, प्रोसेस्ड मीट और रिफांइड चीज़े न खाये।
प्र. एरिथमिया के लिए सबसे अच्छा इलाज क्या है?
उ. एरिथमिया के इलाज के लिये दवाओ के अलावा पेसमेकर, कार्डियोवर्ज़न, कैथेटर अब्लेशन आदि तकनीके अपनायी जाती हैं। हालांकि इसके साथ ही जीवनशैली में परिवर्तन ज़रूरी है जिससे आपका रक्तचाप, कॉलेस्ट्रॉल, वज़न आदि संतुलित रहेँ।
एरिथमिया के लिए प्राकृतिक उपचार
प्राकृतिक रूप से इस समस्या को दूर करने के लिये आप आयुर्वेद में बताये गये योग, सद्वृत्त और आचार रसायन का पालन कर सकते हैं। अर्थात अपनी क्षमता के अनुसार व्यायाम, योग, चिंता से दूर रहना, अच्छे आचरण तथा सामान्य जीवनशैली को अपनाना आदि आपके ह्रदय के स्वास्थ्य को बनाये रखने में मदद करेंगे। ऐसे कारणो से दूर रहेँ जो आपकी इस समस्या को बढा देते हो जैसे- चाय. सिगरेट, शराब का सेवन। पर्याप्त मात्रा में पानी पियेँ। अपने इलेक्ट्रोलाइट बैलेन्स का ध्यान रखे।
एरिथमिया के लिए जड़ी बूटी
आयुर्वेद में एरिथमिया के लिये विभिन्न जडी-बूटियो का वर्णन है जैसे अर्जुन, अश्वगंधा, पुनर्नवा, शंखपुष्पी, ब्राह्मी, पीपल त्वक इत्यादि। यह ह्रदय को प्राकृतिक रूप से बल देती हैं तथा मज़बूत बनाती हैं।
एरिथमिया के लिए विटामिन
एरिथमिया में ऑक्सिडेटिव स्ट्रैस बहुत बड़ा रोल निभाता है। इसको कम करने के लिये एंटी-ऑक्सीडेंट देना फायदेमंद रहता है। विभिन्न शोधो के अनुसार विटामिन सी और विटामिन ई इसके रिस्क को कम कर सकते हैं। अतः आप भी विभिन्न खाद्य पदार्थो के द्वारा इनका सेवन करेँ और अपने ह्रदय को स्वस्थ बनाऐ रखेँ।