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आयुर्वेद की दवाइयों से अल्जाइमर रोग का निदान संभव

By Dr Bhupesh Vashisht | Disease and Treatment | Posted on :   10-Oct-2019

आयुर्वेद में अल्जाइमर रोग के प्रबंधन को लेकर कई तरह की औषधियां और थेरेपी है जिनका दावा है कि ये रोग को ठीक कर सकती है या फिर उसके असर को कम कर सकती है।

आयुर्वेद साहित्य में अल्जाइमर रोग को 'मानस रोग व्याधि' यानी मानसिक रोग के अंतर्गत चिन्हित किया गया है। यह रोग बढ़ती उम्र में होता है जो मस्तिष्क की कार्यप्रणाली और क्षमता को प्रभावित करता है। अल्जाइमर रोग का सबसे बड़ा लक्षण भूलने की प्रवृति है। लेकिन स्मृति जाने के साथ-साथ रोगी के व्यवहार और व्यक्तित्व में भी परिवर्तन हो जाता है। ज्यादातर मामलों में रोगी स्वयं या फिर उसके रिश्तेदार या दोस्त इसकी सूचना चिकित्सक को देकर परामर्श लेते हैं। तब चिकित्सक गहन निरीक्षण के बाद निष्कर्ष या रोग के निदान के अंतिम निर्णय पर पहुँचता है।

लेकिन अफसोस की बात है कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी में भारी प्रगति के बावजूद अल्जाइमर रोग का कोई सटीक उपचार अबतक उपलब्ध नहीं है। बाज़ार में जो आधुनिक दवाइयां मौजूद है वे इस रोग के निदान में या उसे कम करने में बहुत कम प्रभावी साबित हुई है। दूसरी तरफ आयुर्वेद में अल्जाइमर रोग के प्रबंधन को लेकर कई तरह की औषधियां और थेरेपी है जिनका दावा है कि ये रोग को ठीक कर सकती है या फिर उसके असर को कम कर सकती है। इनमें प्रमुख अश्वगंधा, ब्राह्मी, शंखपुष्पी, ज्योतिष्मती, जटामांसी हैं जिनका उल्लेख आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है। इसके अलावा आयुर्वेदिक पौधों से निर्मित सैंकड़ों ऐसे और प्रोडक्ट हैं जिनका क्लिनिकल ट्रायल अब भी चल रहा है।

आयुर्वेदिक फार्माकोपिया में उपरलिखित सभी दवाइयां 'मेध्य द्रव्य' के अंतर्गत सूचीबद्ध है और अल्जाइमर जैसे न्यूरोलॉजिकल विकारों में बेहद प्रभावी माने जाते हैं। हालाँकि ये हर्बल दवाइयां कैसे काम करता है, उसपर बड़े क्लिनिकल ट्रायल होना अभी बाकी है लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि इनमें टैनिन, स्टेरोल्स, पॉलीफेनोल, फ्लेवोनोइड आदि पाए जाते हैं जिनमें एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटी-कोलीनस्टेरेज़ और एंटीऑक्सिडेंट प्रभाव मौजूद होते हैं। इन सभी पौधों में अल्जामाइर रोग को रिवर्स करने की क्षमता होने का दावा किया गया है।

अश्वगंधा एक चमत्कारी औषधि है। इसका उपयोग अमूमन नसों में आराम पहुँचाने या फिर कामोत्तेजक दवा के रूप में किया जाता है। इसके अलावा शारीरिक और मानसिक थकान को दूर करने में भी यह ख़ासा प्रभावी है। दरअसल यह सेन्ट्रल नर्वस सिस्टम / केंद्रीय तंत्रिका तंत्र पर एक शांत प्रभाव लाता है और अल्जाइमर के प्रभाव को कम करने मददगार साबित होता है।

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ब्राह्मी भी एक नसों को आराम देने वाला टॉनिक है (तंत्रिका टॉनिक) है जो मिर्गी, अनिद्रा आदि के खिलाफ काम करता है।

शंखपुष्पी, जटामांसी और ज्योतिष्मती के पौधों का उपयोग आयुर्वेद में सदियों से चिकित्सकों द्वारा मानसिक तनाव कम करने, कार्यक्षमता में सुधार और रोगियों में थकान कम करने के उद्देश्य से किया जाता रहा है।

आयुर्वेदिक दवाइयों के अलावा आयुर्वेद की पंचकर्म थेरेपी भी अल्जाइमर रोग में बहुत कारगर साबित होती है। खासकर 'शिरोधारा' और 'नस्या' बेहद प्रभावी साबित होते हैं। इनमें औषधीय तेल और घी द्वारा अलग-अलग प्रक्रियाओं से थेरेपी की जाती है जिससे काफी आराम मिलता है और मानसिक अवसाद ख़त्म होता है।

आयुर्वेदिक औषधियां आयुर्वेद के मूल सिद्धांत के तहत अल्जाइमर रोग के इलाज का एक महत्वपूर्ण घटक है जो 'आहार-विहार-औषध' चिकित्सा के सिद्धांत या बेहतर आहार, जीवन शैली और औषधीय उपचार के रूप में जाना जाता है। आयुर्वेद के ये तीन महत्वपूर्ण स्तंभ रोगियों को रोगों से लड़ने के लिए मजबूत बनाता है।

अल्जाइमर के रोगियों को केवल ताजा, गर्म और सुपाच्य भोजन ही करना चाहिए जिससे स्वास्थ्य संबंधित दूसरी समस्याओं को काफी हद तक रोका जा सकता है। लेकिन यदि आप अपने स्वास्थ्य को लेकर जागरूक हैं और चाहते हैं कि कभी अल्जाइमर रोग हो ही न तो आपको योग, प्राणायाम या श्वास संबंधी व्यायाम नियमित रूप से करना चाहिए। धूम्रपान और शराब के सेवन से भी बचना चाहिए।

अल्जाइमर रोग के प्रबंधन में दवाएं, आहार और जीवन शैली महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, लेकिन परिवार के सदस्यों और करीबी दोस्तों का साथ भी बेहद जरुरी है। नैतिक समर्थन रोगी को इस रोग से लड़ने और इससे उबरने की शक्ति प्रदान करता है। ( मूलतः क्विंट में प्रकाशित )

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डिस्क्लेमर - लेख का उद्देश्य आपतक सिर्फ सूचना पहुँचाना है. किसी भी औषधि,थेरेपी,जड़ी-बूटी या फल का चिकित्सकीय उपयोग कृपया योग्य आयुर्वेद चिकित्सक के दिशा निर्देश में ही करें।