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एसिडिटी के कारण, लक्षण और घरेलू उपाय - Acidity Ke Karan, Lakshan Aur Gharelu Upay

By Dr Tabassum Hasan | Disease and Treatment | Posted on :   11-Jan-2021

एसिडिटी क्या होता है - What Is Acidity In Hindi

एसिडिटी (Acidity) एक ऐसी बीमारी है जो हज़ारों वर्षों से चली आ रही है परंतु बढती आधुनिकता के कारण लोगों के अनियमित खान-पान से यह बीमारी (Disease) कुछ ज़्यादा ही आम हो गयी है। शहरीकरण और औद्योगिकीकरण के कारण मानव जाति की जीवनशैली (Lifestyle) में भारी बदलाव हुआ है। तेज़ी से बदलती दुनिया का सामना करने के लिये मानव को जंक फूड (Junk Food), अधिक काम और तनावपूर्ण ड्यूटी शेड्यूल को अपनाना पडा। इसी के फलस्वरूप करीब 30% आबादी गैस्ट्रो-ईसोफेगल रिफ्लेक्स (Gastro-esophageal reflex) और गैस्ट्राइटिस (Gastritis) से पीड़ित है जिससे एसिडिटी या अम्लपित्त की उत्पत्ति होती है। तो आइये समझते हैं एसिडिटी क्या है, इसके विभिन्न कारण क्या हैं एवं इसके लक्षण तथा उपाय क्या हैं।

विषय – सूची

  • एसिडिटी क्या होता है
  • एसिडिटी के लक्षण
  • एसिडिटी के कारण
  • निदान
  • पेट में एसिड बनने के घरेलू उपाय
  • क्या खाएं और किससे बचें
  • अकसर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू)

एसिडिटी क्या होता है ? What Is Acidity In Hindi

आयुर्वेद में स्वस्थ दिनचर्या के अंतर्गत दिनचर्या और ऋतुचर्या का वर्णन किया गया है लेकिन वर्तमान समय में व्यस्त जीवन शैली के कारण लोग दिनचर्या और ऋतुचर्या का पालन करने में असमर्थ हैं, जिसके परिणामस्वरूप अग्निमांद्य होता है जो अंततः अम्लपित्त जैसी बीमारियों का कारण बनता है। आयुर्वेद में, अधिकतर रोगों का कारण अग्निमांद्य को बताया गया है। अम्लपित्त या एसिडिटी अन्नवहस्त्रोतस (जीआईटी) की एक आम व्याधि है। 
  
"अम्लपित्त" शब्द दो शब्दों से मिल कर बना है- ‘अम्ल’ और 'पित्त'। इसमें पाचक पित्त (गैस्ट्रिक रस) की मात्रा बढ़ जाती है तथा इसका सामान्य कड़वा स्वाद (क्षारीय) अधिक खट्टे स्वाद (अम्लीय) में बदल जाता है। पित्त के अम्ल गुण की अत्यधिक वृद्धि के कारण पित्त विदग्ध हो जाता है, इसे अम्लपित्त कहा जाता है। एसिडिटी पेट में जलन और गैस बनने से संबंधित है। इसमें गैस्ट्रिक जूस पेट से ईसोफेगस के निचले हिस्से की ओर गति करता है। आयुर्वेद में इसका कारण पित्त दोष की अत्यधिक वृद्धि को माना गया है।

 एसिडिटी के लक्षण - Acidity Symptoms in Hindi

आयुर्वेदिक ग्रंथों में उल्लिखित अम्लपित्त के लक्षण गैस्ट्राइटिस या हाइपर एसिडिटी के समान हैं। अम्लपित्त का सबसे महत्वपूर्ण लक्षण पेट, हृदय और गले में जलन महसूस होना है। यह पित्त दोष के द्रव्य गुण और विदग्धता के बढ़ने के कारण है।
इसके अलावा निम्न लक्षण पाये जाते हैं-
  • अविपाक (पाचन न होना)
  • क्लम (बिना कारण थकावट)
  • उत्क्लेश (उल्टी आने की प्रतीति)
  • तिक्त-अम्ल उदगार (खट्टी डकारे)
  • गौरव (उदरशूल)
  • हृत-कंठ दाह (छाती और गले में जलन)
  • आंत्रकूजन (आंतो का शोर)
  • विड्भेद (दस्त)
  • ह्रदय शूल (छाती में दर्द) 
  • उल्टी होना
  • करचरण दाह (हथेलियों और तलवों में जलन)
  • ऊष्ण (तीव्र गर्मी महसूस करना),
  • महति अरुचि (भूक में अत्यधिक कमी)
  • एसिडिटी ज़्यादा होने पर बुखार, उल्टी, खुजली, त्वचा पर रैशेज़ जैसे लक्षण भी आ सकते हैं।

एसिडिटी के कारण - Acidity Causes in Hindi

अम्लपित्त व्याधि उल्टे सीधे खान-पान और पित्त दोष को बढाने वाले खाद्य पदार्थों के सेवन से होती है। ऐसे लोग जिनका पित्त संतुलन में नहीं होता, वे व्यक्ति हाइपरएसिडिटी, पेप्टिक अल्सर जैसे विकारों के लिए अतिसंवेदनशील होते हैं। अम्लपित्त की उत्पत्ति में तीन घटक मुख्य भूमिका निभाते हैं- अग्निमांद्य, आम और अन्नवह स्रोतो दुष्टि। इसके साथ-साथ, पित्त दोष की विकृति के कारण, विशेष रूप से पाचक पित्त की मात्रात्मक और गुणात्मक वृद्धि होती है, जिससे अम्लपित्त की उत्पत्ति होती है। 
   
गैस्ट्रिक ग्रंथियाँ एसिड का उत्पादन करती हैं, जो भोजन के पाचन में मदद करता है। पेट में एसिड के अतिरिक्त उत्पादन को हाइपर एसिडिटी कहा जाता है। आयुर्वेद के अनुसार निम्न कारण एसिडिटी को उत्पन्न करते हैं-
 
 1) आहारज कारण: इसमें विभिन्न प्रकार की आहार सम्बंधी गलत आदतें शामिल हैं।
  • विरुद्ध आहार (असंगत आहार)
  • अध्यशन (भोजन के बाद भोजन)
  • भोजन के पाचन से पहले ही दोबारा भोजन करना
  • बहुत समय तक भूका रहना, नाश्ता न करना
  • अजीर्ण भोजन (निरंतर भोजन का पाचन न होना)
  • गुरु (भारी भोजन करना)
  • स्निग्ध भोजन (तैलीय भोजन करना) 
  • अत्यधिक रूखा-सूखा भोजन आदि अग्निमांद्य (भूख न लगना) का कारण बनते हैं, जो अम्लपित्त उत्पन्न करता है। 
2) विहारज कारण: इसमें जीवन शैली सम्बंधित कारक शामिल हैं। यह दो प्रकार का है-
  • अत्यधिक शारीरिक कार्य- अत्यधिक व्यायाम करना, रात में जागना तथा उपवास रखना। यह वात तथा पित्त दोष को बढाते हैं।
  • बहुत कम शारीरिक काम करना- प्राकृतिक वेगो को धारण करना, भोजन के बाद दिन में सो जाना, अत्यधिक स्नान आदि।  ये सभी पाचक अग्नि को कम करते हैं तथा अम्लपित्त उत्पन्न करते हैं।
3) मानसिक कारण: मनोवैज्ञानिक कारक जैसे चिंता, शोक, क्रोध आदि भी एसिडिटी उत्पन्न करने में महत्वपूर्ण कारण है। 
 
4) अन्य कारण: शरद ऋतु (पतझड़ का मौसम), शराब, धूम्रपान, चाय-काफी का अधिक सेवन, तम्बाकू चबाना, NSAIDS (दर्द निवारक गोलियों) का लंबे समय तक सेवन, हेलिकोबैक्टर पाइलोरिक संक्रमण, कब्ज़ इत्यादि। उपरोक्त सभी कारक शरीर में 'पित्त दोष' की अत्यधिक वृद्धि के परिणामस्वरूप अम्लपित्त के लक्षणों को उत्पन्न करते हैं।

निदान - Acidity Treatment in Hindi

वैसे तो लक्षणों, जीवन शैली तथा आहार सम्बंधी आदतों के आधार पर एसिडिटी का निदान कर लिया जाता है, परंतु यदि दवाओं या जीवनशैली में बदलाव से मदद नहीं मिलती है और लगातार गंभीर लक्षण आ रहे हैं, तो निम्न परीक्षण करवाए जाते हैं:
  • ईसोफेगल बेरियम टेस्ट 
  • एसोफैगल मैनोमेट्री
  • पीएच परीक्षण
  • एंडोस्कोपी
  • बायोप्सी

पेट में एसिड बनने के घरेलू उपाय​ - Acidity Home Remedies in Hindi

आयुर्वेद में एसिडिटी के लिए बहुत ही सरल और प्रभावी उपाय बताये गये हैं। इसके उपचार में मुख्यतः आम(विषाक्त पदार्थ) और अग्निमांद्य(अल्प पाचन शक्ति) को ठीक करना है। इसके लिये आयुर्वेद में भिन्न औषधियाँ विधियाँ बताई गई हैं यथा मृदु वमन, मृदु विरेचन, अनुवासन और निरुह वस्ति इत्यादि। परंतु घर में भी कुछ उपाय किये जा सकते हैं जो एसिडिटी को कम करने में सहायक हैं-
  • लंघन- खाने में हल्का भोजन लें। यह सुपाच्य होता है।
  • पीने के लिये हल्के गर्म पानी का उपयोग करें।
  • तिक्त रस वाली औषधियाँ लेँ जैसे गिलोय, त्रिफला, शतावरी, हरड़ इत्यादि। 
  • धनिये के बीज (धान्यक) का काढा चीनी मिला कर लिया जा सकता है। यह पाचन में सहायक है।
  • नारियल पानी को 100-500 मिली तक दिन में दो बार लेना चाहिए।
  • 3-6 ग्राम आंवले का चूर्ण पानी के साथ लिया जा सकता है। 
  • खाने के बाद 1 चम्मच सौंफ चबा लें या सौंफ का चूर्ण एक गिलास पानी में चीनी के साथ लिया जा सकता है। यह पाचक अग्नि बढाने में सहायक है।
  • ठंडा दूध भी एसिडिटी कम करता है।

क्या खाएं और किससे बचें - Diet for Acidity in Hindi

एसिडिटी का एक मुख्य कारण गलत खान-पान की आदतें हैं। इसीलिये आयुर्वेद में विशेषतः पथ्य-अपथ्य(क्या करें-क्या न करें) का वर्णन किया गया है। निम्न कुछ टिप्स एसिडिटी को कम करने में सहायक हैं- 
  • नियमित समय पर हल्का भोजन करें तथा चबा-चबा कर खाये।
  • खाने से पहले पानी पिये।
  • शरीर को ठंडा करने वाले पदार्थ जैसे नारियल पानी आदि का सेवन करें।
  • सफेद कद्दू, करेला, खीरा,पत्तेदार सब्जियों को भोजन में शामिल करें।
  • गेहूं, पुराना चावल, जौ, हरा चना जैसे अनाज खाये।
  • आंवले, अंगूर, नीबू, अनार, अंजीर जैसे फल खाये।
  • अनार का रस, नींबू का रस, आंवले का रस तथा खस-खस, धनिये के बीज से बनाये गये तरल पदार्थों को पर्याप्त मात्रा में ले।
  • गुलकंद (गुलाब की पंखुड़ियों से बना जैम) दूध के साथ लिया जा सकता है।
  • एक चम्मच घी को गर्म दूध के साथ लिया जा सकता है।
  • पर्याप्त नींद लें और आराम करें।
  • मानसिक तनाव से बचने के लिये योग, प्राणायाम, ध्यान का सहारा लेँ ।
  • अम्लपित्त मुख्य रूप से पित्त की वृद्धि के कारण होता है। इस पित्त दोष के बढ़ने का कारण तीखे और खट्टे खाद्य पदार्थों, मादक पदार्थों, नमक, गर्म और तीखे पदार्थों का अत्यधिक सेवन है जो जलन का कारण बनता है। अतः इनसे बचें।
  • तली-भुनी और जंक फूड वाली चीजों से परहेज करें। 
  • भूखे न रहें। उपवास से बचें।
  • अधिक भोजन न करें, कम मात्रा में भूख लगने पर ही भोजन लें। 
  • असमय और अनियमित भोजन की आदत से बचें। 
  • चावल, दही और खट्टे फलों से बचें। 
  • धूम्रपान, शराब, चाय, कॉफी और दर्द निवारक गोलियों के सेवन से बचें। 
  • क्रोध, भय, आग के अत्यधिक संपर्क, सूखी सब्जियों और क्षार का सेवन, आदि से यथासंभव दूर रहना चाहिए।

एसिडिटी को लेकर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू) - FAQs

एसिडिटी के क्या-क्या काम्प्लीकेशन हो सकते हैं?
यदि समय पर इलाज नहीं किया जाता और अस्वास्थ्यकर आहार, विहार और आदतों को नहीं बदला जाता तो एसिडिटी से भयंकर बीमारियाँ हो सकती हैं यथा गैस्ट्रिक अल्सर, जीर्ण जठरशोथ, ग्रहणीशोथ, इरिटेबल बावल सिंड्रोम, एनीमिया, पेप्टिक स्टेनोसिस इत्यादि।
 
एसिडिटी से बचने के लिये क्या उपाय अपनाये जा सकते हैं?
आयुर्वेद में निदान परिवर्जन को प्राथमिक चिकित्सा बताया गया है, अतः एसिडिटी से बचने के लिये भी इसके कारणों से बचना चाहिये। 
  • अत्यधिक नमकीन, तैलीय, खट्टे और मसालेदार भोजन से बचें। 
  • भारी और असमय भोजन से बचें। 
  •  धूम्रपान और शराब के सेवन से बचें।
  • आहार में जौ, गेहूं, पुराना चावल शामिल करें। 
  •  बासी और दूषित भोजन से बचें। 
  • भोजन ठीक से पकाया जाना चाहिए। 
  • मानसिक तनाव से बचने के लिये ध्यान आदि का पालन करें।
क्या पंचकर्म एसिडिटी को ठीक करने में मदद करेगा?
हाँ, यह शरीर को साफ करता है तथा उत्क्लेशित पित्त को संतुलित करता है।

संदर्भ: 

  1. अष्टांग हृदयम् १ / त्रिपाठी ब्रह्मानंद; चौखम्बा संस्कृत प्रतिष्ठान, दिल्ली, प्रथम संस्करण।
  2. चरक संहिता, त्रिपाठी ब्रह्मानंद, चौखम्बा प्रकाशन, वाराणसी, प्रथम संस्करण।
  3. भावप्रकाश निघंटु - श्रीभावप्रकाश सम्पादन विद्यादिनी हिंदी भाष्य श्री ब्रह्मसंस्कार मिश्र और श्री रूपलालजी वैश्य।
  4. सुश्रुत संहिता; घनेकर भास्कर; मेहरचंद लछमणदास प्रकाशन, नई दिल्ली, संस्करण। 
  5. विजय रक्षित कन्ठदत्त, माधव निदान, चौखम्बा प्रकाशन, वाराणसी।
  6. www.webmd.com
डिस्क्लेमर - लेख का उद्देश्य आपतक सिर्फ सूचना पहुँचाना है. किसी भी औषधि,थेरेपी,जड़ी-बूटी या फल का चिकित्सकीय उपयोग कृपया योग्य आयुर्वेद चिकित्सक के दिशा निर्देश में ही करें।