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ClinicsBy NS Desk | Ayurveda Street | Posted on : 05-Mar-2019
भागमभाग भरी जिन्दगी में लोगों को शारीरिक बीमारियों के साथ कई तरह की मानसिक बीमारियाँ भी जकड़ लेती है. तनाव में लोगों के आपसी संबंधों को भी प्रभावित करना शुरू कर दिया है. इनसे बचने के लिए लोग हर्बल थेरेपी की शरण में जा रहे हैं. ऐसी ही एक हर्बल थेरेपी पंचकर्म चिकित्सा है जो लोगों के तन और मन को नयी स्फूर्ति प्रदान करती है.
आयुर्वेद जीवन विज्ञान होने के नाते आरोग्य के संरक्षण द्वारा रोग के बचाव का कार्य तो करता ही है. इसमें दीर्घकालिक रोगों के बेहतर उपचार की एक से एक पद्धति है. दीर्घकालिक रोगों की चिकित्सा व्यवस्था में पंचकर्म चिकित्सा आयुर्वेद का मौलिक अधिकार है. आयुर्वेदाशास्त्र में पंचकर्म चिकित्सा पद्धति का गौरवशाली स्थान है. दीर्घायु प्राप्त करने, स्वास्थ्य लाभ लेने व् स्वास्थ्य की रक्षा के लिए यह चिकित्सा पद्धति प्रयोग में लायी जाती है. पंचकर्म पद्धति के जरिए रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है. साधारण से लेकर गंभीर बीमारियों तक में वह बेहद असरकारक सिद्ध होता है.
आयुर्वेद में महर्षि चरक ने वमन, विरेचन, अस्थापन, अनुवाशन और शिरोवाचन या नस्य जैसे पांच कर्मो का उल्लेख पंचकर्म में किया है. इन्हीं कर्मों के आधार पर पंचकर्म चिकित्सा की जाती है. आयुर्वेद के अनुसार इससे शरीर के रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है. यादाश्त और हमारी ज्ञानेन्द्रियों की संवेदनशीलता बढ़ाने में भी वह सहायक होती है. स्वास्थ्य रक्षा के मनुष्यों के दिनचर्या और वेगाविरोधी जन्य पंचकर्म किया जाता है. रसायन और वाजीकरण आयुर्वेद का विशिष्ट तंत्र है. रसायन प्राप्ति से स्वास्थ्य के प्रति उत्साह बना रहता है जबकि वाजीकरण में यौन संबंध व संतानोत्पति की शक्ति बढ़ती है.
(मणिभूषण कुमार, बी.ए.एम.एस. (पैट), सी.आर.ए.डी., नयी दिल्ली, आर.सी.पी. (पैट), सी.एम.ई. (पैट) का यह लेख आयुर्वेद पर्व की स्मारिका से साभार लिया गया है)
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