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ClinicsBy NS Desk | Ayurveda Street | Posted on : 16-Sep-2021
आयुष मंत्रालय ने आयुर्वेदिक और अन्य भारतीय पारंपरिक दवाओं की गुणवत्ता बढ़ाने का रास्ता तैयार कर दिया है। इससे दुनिया में इन दवाओं की उपस्थिति बढ़ेगी और निर्यात क्षमता में भी वृद्धि होगी। इसमें अमेरिका के बाजार का विशेष स्थान है। भारतीय चिकित्सा एवं होम्योपैथी भेषजसंहिता आयोग (पीसीआईएम-एंड-एच) ने अमेरिकन हर्बल फॉर्माकोपिया (एएचपी) के साथ 13 सितंबर, 2021 को एक समझौता-ज्ञापन पर हस्ताक्षर करके यह महत्त्वपूर्ण काम अंजाम दिया है।
इस समझौता-ज्ञापन पर वर्चुअल माध्यम से हस्ताक्षर किये गये। समझौता करने के सम्बंध में आयुष मंत्रालय का उद्देश्य है कि दोनों देशों के बीच बराबरी तथा आपसी लाभ के आधार पर आयुर्वेद और अन्य भारतीय पारंपरिक औषधि प्रणालियों को प्रोत्साहित किया जाये और उनके मानकीकरण का विकास किया जाये।
इस सहयोग से आयुर्वेद, सिद्ध, यूनानी और होम्योपैथी दवाओं की निर्यात क्षमता को बढ़ाने के दूरगामी प्रयास होंगे। समझौते के तहत एक संयुक्त समिति का गठन किया जायेगा, ताकि पारंपरिक औषधि के क्षेत्र में सहयोग के हवाले से मोनोग्राफ के विकास तथा अन्य गतिविधियों के लिये समय-सीमा के साथ एक कार्य योजना भी विकसित की जाये।
आयुष मंत्रालय को विश्वास है कि इस समझौते से आयुर्वेद, सिद्ध, यूनानी और होम्योपैथी दवाओं के बारे में विश्व समुदाय में भरोसा पैदा होगा। इस साझेदारी का एक प्रमुख नतीजा यह होगा कि पीसीआईएम-एंड-एच और एएचपी, अमेरिका में आयुर्वेद उत्पादों/दवाओं के बाजार के सामने आने वाली विभिन्न चुनौतियों की मिलकर पहचान करेंगे। इस कदम से सहयोग के तहत विकसित होने वाले आयुर्वेद मानकों को अमेरिका के हर्बल दवाओं के निर्माता अपना लेंगे। इसे एक बड़ा कदम कहा जा सकता है और फलस्वरूप सहयोग के तहत विकसित आयुर्वेद मानकों को अपनाये जाने से अमेरिकी बाजार में आयुर्वेद, सिद्ध, यूनानी और होम्योपैथी दवाओं को बेचने का रास्ता खुल जायेगा।
आयुर्वेद और अन्य भारतीय पारंपरिक औषधियों और जड़ी-बूटियों से बने उत्पादों के लिये मोनोग्राफ का विकास, पक्षों के बीच मोनोग्राफ के विकास के लिये तकनीकी आंकड़ों का आदान-प्रदान, प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण, जड़ी-बूटियों के नमूने, वनस्पतियों के नमूने तथा पौधों के रासायनिक मानकों को भी समझौते का अंग बनाया गया है। दोनों पक्षों के बीच यह समझ भी बनी है कि आयुर्वेद और अन्य भारतीय पारंपरिक दवा उत्पादों तथा जड़ी-बूटियों के उत्पादों के लिये एक डिजिटल डेटाबेस बनाया जाये। इसके तहत आयुर्वेद और अन्य भारतीय पारंपरिक दवाओं के इस्तेमाल के बारे में गुणवत्ता मानकों को प्रोत्साहित करने के लिये सहयोग के अन्य उपायों की पहचान की जायेगी।
भारत और अमेरिका के बीच यह समझौता ऐसे समय में हुआ है, जब आयुष मंत्रालय भारत और विदेश में आयुर्वेद तथा अन्य भारतीय पारंपरिक औषधीय उत्पादों की गुणवत्ता बेहतर बनाने के लिये कई कदम उठा रहा है। आयुर्वेद और अन्य आयुष दवाओं ने गलत जीवन-शैली से पैदा होने वाली बीमारियों से निपटने में बहुत योगदान किया है। इन बीमारियों से इस सदी में तमाम लोग मृत्यु को प्राप्त हुये हैं।
इसके अलावा, संक्रमण के खिलाफ लड़ने को शरीर की रोग विरोधी क्षमता को बढ़ाने में भी आयुर्वेद, सिद्ध, यूनानी और होम्योपैथी की अहम भूमिका है, जिसके प्रमाण सबके सामने हैं। यह अत्यंत प्रसंशनीय है। भारत को पारंपरिक स्वास्थ्य सुविधा प्रणाली का वरदान मिला है। यह प्रणालियां बड़े पैमाने पर मान्य हैं, क्योंकि ये आसानी से उपलब्ध हैं, सस्ती, सुरक्षित हैं और लोगों को उन पर भरोसा है। यह आयुष मंत्रालय के अधिकार-क्षेत्र में है कि वह इन औषधियों को दुनिया भर में मान्य करने के लिये वह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इन प्रणालियों का प्रचार-प्रसार करे।
इस समझौता-ज्ञापन से दोनों पक्ष आयुर्वेद और अन्य भारतीय पारंपरिक औषधीय उत्पादों की गुणवत्ता तथा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये मानकों की भूमिका को मान्यता प्रदान करेंगे। इससे पारंपरिक/हर्बल दवाओं और उनके उत्पादों की गुणवत्ता के प्रति समझ तथा जागरूकता बढ़ेगी।
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