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विश्व को व्यायाम का विचार आयुर्वेद की देन है

By NS Desk | Ayurveda Street | Posted on :   10-Jan-2019

आयुर्वेद में व्यायाम का महत्व - - डॉ. दीप नारायण पाण्डेय

व्यायाम-औषधि-है (एक्सरसाइज इज मेडिसिन) का नारा दुनिया की कुछ संस्थाओं अब अपने नाम से पंजीकृत कर लिया है| किन्तु प्रमाण-आधारित बात यह है कि विश्व को व्यायाम का विचार आयुर्वेद की देन है। चरक और सुश्रुत द्वारा हिप्पोक्रेट्स (460-370 ईसा पूर्व) और गैलेन (129-210 ईस्वी) से बहुत पहले, कम से कम आठवीं शताब्दी ईसा पूर्व, स्वास्थ्य और चिकित्सा के लिये व्यायाम के महत्त्व को बहुत विस्तृत रूप से परिभाषित किया गया था। आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में चरक और सुश्रुत द्वारा हिप्पोक्रेट्स (460-370 ईसा पूर्व) और गैलेन (129-210 ईस्वी) से बहुत पहले आठवीं शताब्दी ईशा पूर्व स्वास्थ्य और चिकित्सा के लिये व्यायाम के महत्त्व को बहुत विस्तृत रूप से परिभाषित किया गया था। सिंधु घाटी सभ्यता में ईसा से 3300 वर्ष पूर्व स्वास्थ्य तथा व्यायाम के संदर्भ में प्रमाण उपलब्ध हुये हैं। यह बात दीगर है कि यूरोपीय और अमेरिकी लेखकों में से अधिकांश आयुर्वेद की इस सच्चाई को स्वीकार करने या समझ सकने में अक्षम रहे हैं। देश के तथाकथित विद्वान इतिहासकारों ने भी लम्बे समय तक इस तथ्य की वस्तुनिष्ठ व्याख्या नहीं किया। हो सकता है कि अन्तराष्ट्रीय कार्यशालाओं में निमंत्रण न मिलने की आशंका और परिणामस्वरूप मलाई बिगड़ने के भय ने इतिहास की वस्तुनिष्ठता से समझौता करने के लिये मज़बूर किया हो। जो भी हो, यह बात अब निर्विवाद है कि चरक का काल आठवीं शताब्दी ईसा पूर्व तथा सुश्रुत का काल छठी शताब्दी ईसा पूर्व माना जाता है।

आयुर्वेद में व्यायाम की परिभाषा

आयुर्वेद के सिद्धांतों से स्पष्ट होता है की व्यायाम न केवल स्वस्थ्य व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा में उपयोगी है अपित व्यायाम स्वयं में एक चिकित्सा की विधि भी है। चरकसंहिता के सूत्रस्थान में व्यायाम पर विस्तृत वर्णन और परिभाषा वस्तुतः विश्व में व्यायाम की सबसे प्राचीन उपलब्ध परिभाषा है। अब यह भी स्पष्ट हो गया है कि व्यायाम की संहिताकालीन व्याख्या तथा समकालीन वैज्ञानिक शोध के निष्कर्षों में अद्भुत समानता है। चरकसंहिता, सुश्रुतसंहिता और अष्टांगहृदय में स्वस्थ शरीर और मन को स्वस्थ रखने हेतु व्यायाम, योग और स्वास्थ्यवृत्त का बड़ा सुन्दर संयोजन उपलब्ध है। व्यायाम की परिभाषा, भली प्रकार से किये गये व्यायाम के परिणाम, त्रुटिपूर्ण व्यायाम के दुष्परिणामों आदि का विस्तृत वर्णन है। व्यायाम के अयोग्य व्यक्ति या वे परिस्थितियों जिनमें व्यायाम नहीं किया जाना चाहिये, इस सबका सारगर्भित विश्लेषण है।

चरकसंहिता में व्यायाम

व्यायाम को आचार्य चरक ने बीस प्रकार के कफ रोगों के उपचार के रूप में वर्णित किया है। चरकसंहिता के सूत्रस्थान में व्यायाम शब्द को 46 बार, निदानस्थान में 8 बार, विमानस्थान में 10 बार, शारीरस्थान में 6 बार तथा सिद्धिस्थान में 11 बार एवं चिकित्सास्थान में 38 बार प्रयोग किया गया है। कुल मिलाकर यदि देखा जाये तो चरकसंहिता में 119 बार व्यायाम शब्द का प्रयोग हुआ है। सुश्रुतसंहिता में व्यायाम शब्द का प्रयोग सूत्रस्थान में 23 बार, निदान स्थान में 5 बार, शरीरस्थान में 3 बार, चिकित्सास्थान में 23 बार, कल्पस्थान में 1 बार तथा उत्तर तंत्र में 18 बार प्रयोग हुआ है। इसी प्रकार वाग्भट ने अष्टांगहृदय के सूत्रस्थान में 19 बार, निदानस्थान में 3 बार, चिकित्सा स्थान में 5 बार और उत्तरस्थान में 3 बार व्यायाम शब्द का प्रयोग दिग्दर्शित किया है। इससे स्पष्ट है कि आचार्यों ने स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा एवं रोगी को रोगमुक्त करने के संदर्भ में व्यायाम की स्पष्ट भूमिका को दिग्दर्शित किया है।

व्यायामः औषधम्

“व्यायामः स्थैर्यकराणां” चरकसंहिता का एक ऐसा महावाक्य है (च.सू.25.40) जिसका सन्दर्भ विशेष में अर्थ यह है शरीर को स्थिरता देने में व्यायाम सर्वश्रेष्ठ है। व्यायाम को औषधि भी माना गया है (व्यायामः औषधम्। -यजुर्विद आयुर्वेद सूत्र 1.7)। महर्षि चरक द्वारा दी गयी सलाह की मदद से विश्व भर में लोगों द्वारा शारीरिक श्रम न करने के कारण होने वाली बीमारियों से निपटने में नष्ट हो रहे 54 बिलियन डॉलर का अनावश्यक खर्च बचाया जा सकता है। दुनिया के 142 देशों के लिये उपलब्ध उच्चकोटि के आंकड़े, जो दुनिया की 93.2 प्रतिशत आबादी के प्रतिनिधि-आंकड़े हैं, से पता चलता है कि शारीरिक निष्क्रियता के कारण होने वाली बीमारियों जैसे कोरोनरी हृदय रोग, स्ट्रोक, टाइप-2 मधुमेह, स्तन कैंसर, पेट के कैंसर आदि के उपचार में लगाने वाली सीधी लागत लगभग 54 बिलियन डॉलर है। इसके अलावा, शारीरिक निष्क्रियता से होने वाली मौतों के कारण 13.7 बिलियन डॉलर उत्पादकता घटने की कीमत भी चुकानी पड़ती है। यही कारण है कि एक बार आज की चर्चा पुनः व्यायाम पर केन्द्रित है| वर्ष 2016 में विश्व-प्रसिद्ध शोध पत्रिका लैंसेट में 10 लाख से अधिक लोगों के संदर्भ में एकत्र आंकड़ों के आधार पर प्रकाशित एक मेटाएनलिसिस से ज्ञात होता है कि प्रायः कुर्सी में बैठे-बैठे काम करने वाले लोग यदि रोजाना 60 से 75 मिनट व्यायाम करें तो उनके असमय मरने का जोखिम कम हो जाता है।

शरीर को थकाने वाला कार्य ही व्यायाम है - महर्षि सुश्रुत

मोटापा प्रबंध के लिये समुचित खानपान के साथ ही सप्ताह में कम से कम 150 मिनट का व्यायाम लाभकारी है। लगभग 14 लाख लोगों के मध्य किये गये अध्ययन के आँकड़े बताते हैं कि व्यायाम 26 प्रकार के कैंसर का जोखिम घटाता है। व्यायाम हृदय रोग, डायबिटीज, कैंसर, मनोरोग सहित कम से कम 22 प्रकार के गैर-संचारी रोगों से बचाव की प्रमाण-आधारित औषधि है। जैसा कि पूर्व में कहा गया है, वास्तव में गैर-संचारी रोग विश्व में 6.3 ट्रिलियन डालर का वित्तीय बोझ डाल रहे हैं, और वर्ष 2030 तक 13 ट्रिलियन डालर तक बढ़ने की आशंका है। गैर-संचारी रोगों के कारण 3.6 करोड़ लोग सालाना दुनिया से चले जाते हैं। शारीरक श्रम जो स्थिरता और बल बढ़ाने वाला हो वह व्यायाम कहलाता है। इसे समुचित मात्रा में किया जाना चाहिये (च.सू. 7.31): शरीरचेष्टा या चेष्टा स्थैर्यार्था बलवर्धिनी। देहव्यायामसंख्याता मात्रया तां समाचरेत्।। महर्षि सुश्रुत का कथन है कि शरीर को थकाने वाला कार्य ही व्यायाम है (सु.चि. 24.38): शरीरायासजननं कर्म व्यायामसंज्ञितम्। तत् कृत्वा तु सुखं देहं विमृद्नीयात् समन्ततः।।

लाघवं कर्मसामर्थ्यं स्थैर्यं दुःखसहिष्णुता। दोषक्षयोऽग्निवृद्धिश्च व्यायामादुपजायते।।

शरीर में पसीना आना, श्वसन का बढ़ना, शरीर के अंगों का हल्का होना, और दिल की धड़कन बढ़ना, समुचित व्यायाम के लक्षण है (च.सू. 7.31-1): स्वेदागमः श्वासवृद्धिर्गात्राणां लाघवं तथा। हृदयाद्युपरोधश्च इति व्यायामलक्षणम्।। व्यायाम से हल्कापन, कार्य करने की क्षमता, मजबूती, दुःख सहने की क्षमता, शरीर में दोषों की साम्यता, और अग्नि में बढ़ोतरी होती है (च.सू. 7.32): लाघवं कर्मसामर्थ्यं स्थैर्यं दुःखसहिष्णुता। दोषक्षयोऽग्निवृद्धिश्च व्यायामादुपजायते।। सुश्रुत का कथन है कि (सु.चि. 24.39-40): शरीरोपचयः कान्तिर्गात्राणां सुविभक्तता। दीप्ताग्नित्वमनालस्यं स्थिरत्वं लाघवं मृजा।। श्रमक्लमपिपासोष्णशीतादीनां सहिष्णुता। आरोग्यं चापि परमं व्यायामादुपजायते।। अर्थात, व्यायाम करने से शरीर की पुष्टि, कान्ति, सौष्ठवपूर्ण अंग, बढ़िया भूख, आलस्य समाप्त होना, स्थिरता, हल्कापन, तथा शरीर की शुद्धि होती है। श्रम, क्लम, प्यास, गर्मी, सर्दी सहने की क्षमता बढ़ती है और व्यायाम से परम आरोग्य उत्पन्न होता है। तात्पर्य यह लिया जाये कि बैठे-बैठे बढ़िया गुरु भोजन ग्रहण और खटिया-कुर्सी तोड़ते रहना हमारे स्वास्थ्य के अच्छा नहीं है। अपनी आधी ताक़त के शारीरिक श्रम और व्यायाम करना मन-मस्तिष्क, प्राण और शरीर के लिये उपयोगी है।

अष्टांगहृदय में चरकसंहिता और सुश्रुतसंहिता में दिये गये कथनों को समाहित करते हुये कहा गया है (अ.सू. 2.10-14) लाघवं कर्मसामर्थ्यं दीप्तोऽग्निर्मेदसः क्षयः। विभक्तघनगात्रत्वं व्यायामादुपजायते।। वातपित्तामयी बालो वृद्धोऽजीर्णी च तं त्यजेत्। अर्धशक्त्या निषेव्यस्तु बलिभिः स्निग्धभोजिभिः।। शीतकाले वसन्ते च मन्दमेव ततोऽन्यदा। तं कृत्वाऽनुसुखं देहं मर्दयेच्च समन्ततः।। तृष्णा क्षयः प्रतमको रक्तपित्तं श्रमः क्लमः। अतिव्यायामतः कासो ज्वरश्छर्दिश्च जायते।। व्यायामजागराध्वस्त्रीहास्यभाष्यादि साहसम्। गजं सिंह इवाकर्षन् भजन्नति विनश्यति।। अति-व्यायाम के कारण थकान, शरीर निढाल होना, दुर्बलता, प्यास, आन्तरिक रक्त प्रवाह, श्वास लेने में कठिनाई, अंधेरा छा जाना, खांसी, बुखार और उबकाई होती है (च.सू. 7.33): श्रमः क्लमः क्षयस्तृष्णा रक्तपित्तं प्रतामकः। अतिव्यायामतः कासो ज्वरश्छर्दिश्च जायते।। कहने का तात्पर्य यह है कि अति-उत्साह में शरीर की मर्यादा का उल्लंघन करके या अपने शरीर की औक़ात को भूलकर कसरत व्यायाम आदि में अति करने से हानि होती है। अधिक सैक्स, अधिक भार ढोने या अधिक चलने से जो लोग दुर्बल हो गये हैं या गुस्सा, शोक, डर व श्रम से पीड़ित हैं, बालक, बूढ़े, वातपीड़ित, ऊंची आवाज में बहुत बोलने वाले, भूखे या प्यासे हों, उन्हें व्यायाम करना करना ठीक नहीं रहता| अतः यदि संभव हो तो इन समस्याओं से मुक्त होकर ही व्यायाम करना चाहिये (च.सू. 7.35-1,2): अतिव्यवायभाराध्वकर्मभिश्चातिकर्शिताः। क्रोधशोकभयायासैः क्रान्ता ये चापि मानवाः।। बालवृद्धप्रवाताश्च ये चोच्चैर्बहुभाषकाः। ते वर्जयेयुर्व्यायामं क्षुधितास्तृषिताश्च ये।।

यत्तु चङ्क्रमणं नातिदेहपीडाकरं भवेत्। तदायुर्बलमेधाग्निप्रदमिन्द्रि यबोधनम्।।

व्यायाम को परिभाषित करते हुये महर्षि सुश्रुत ने लिखा है कि जो घूमना-फिरना शरीर के लिये बहुत पीड़ाकारी न हो वह आयु, बल, मेधा तथा अग्निवर्धक होता है और इन्द्रियों के लिये बोधकारी होता है (सु.चि. 24.80): यत्तु चङ्क्रमणं नातिदेहपीडाकरं भवेत्। तदायुर्बलमेधाग्निप्रदमिन्द्रि यबोधनम्।। वस्तुतः व्यायाम शरीर के बल के आधे तक ही करना चाहिये: वलस्यार्धेन कर्तव्यो व्यायामो (सु.चि. 24.47)। व्यायाम करने वाले आदमी को उसके दुश्मन भी डर के मारे नहीं तंग करते| बुढ़ापा भी सहसा नहीं चढ़ बैठता (सु.चि.24.41-42): न च व्यायामिनं मर्त्यमर्दयन्त्यरयो बलात्|| न चैनं सहसाऽक्रम्य जरा समधिरोहति| पाषाणयुग में मानव रोज 4000 कैलोरी ऊर्जा शारीरिक-श्रम में खर्च देता था| शोध से ज्ञात होता है कि सप्ताहांत में एक या दो बार किया गया शारीरिक व्यायाम भी बीमारी से बचाता है| व्यायाम धूम्रपानकर्ताओं में भी कैंसर व हृदयरोग का खतरा 30 प्रतिशत तक कम कर देता है| व्यायाम करने वाले लोगों में विरुद्ध आहार का असर भी कम ही होता है| कमर दर्द और गर्दन के दर्द को रोकने में शारीरिक गतिविधि एकमात्र लगातार उपयोगी कारक साबित हुआ है| शारीरिक श्रम व बुढ़ापे में स्वास्थ्य के बीच गहरा रिश्ता है| इसलिये प्रतिदिन व्यायाम कीजिये और स्वस्थ रहिये|

(डॉ. दीप नारायण पाण्डेय इंडियन फारेस्ट सर्विस में वरिष्ठ अधिकारी हैं। यह लेख लेखक के ब्लॉग से साभार लिया गया है)

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